हमारी अंजुमन में आज तनहाई का आलम है।
थपेड़े सहन करके भी सदा खामोश रहते हैं।
नदी के दो किनारों को कभी मिलना नहीं होता।
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वाह...वाह बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंबढ़िया है मुक्तक-
जवाब देंहटाएंआभार गुरु जी -
देख किनारों को लगे, मिलना है बेकार |
जल जाएगा उड़ सकल, जो जाए उस पार |
जो जाए उस पार, रूप का सतत आचमन |
यह मुक्तक नवनीत, बाँचते दुर्जन सज्जन |
ऐसे ही है ठीक, दूर ही रहना प्यारों |
बना रहे अस्तित्त्व, करो उपकार किनारों ||
बढिया बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंगमजदा हो कर जुल्म को खूब सहते हैं।
जवाब देंहटाएंथपेड़े सहन करके भी सदा खामोश रहते हैं।
यही तो सबसे बड़ी कमी है। खैर, उत्कृष्ट रचना !
सुन्दर मुक्तक "शहनाइयों के शोर में, भी घोर मातम है।
जवाब देंहटाएंहमारी अंजुमन में आज तनहाई का आलम है।
हबीबों की मजारों पर कोई सज़दा करेगा क्यों?
रकीबों की कतारें है जहाँ खुशियाँ बहुत कम हैं।।....
बहुत सुन्दर मुक्तक
जवाब देंहटाएंlatest postअनुभूति : प्रेम,विरह,ईर्षा
atest post हे माँ वीणा वादिनी शारदे !
शहनाइयों के शोर में, भी घोर मातम है।
जवाब देंहटाएंहमारी अंजुमन में आज तनहाई का आलम है।
हबीबों की मजारों पर कोई सज़दा करेगा क्यों?
रकीबों की कतारें है जहाँ खुशियाँ बहुत कम हैं।।
क्या खूब कहा हैं अपने बहुत सुन्दर
दिनेश पारीक
मेरी नई रचना फरियाद
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
वाह !
जवाब देंहटाएंदो मुक्तक" (डॉ.रूपचन्द्र सास्त्री 'मयंक')
जवाब देंहटाएंशहनाइयों के शोर में, भी घोर मातम है।
हमारी अंजुमन में आज तनहाई का आलम है।
हबीबों की मजारों पर कोई सज़दा करेगा क्यों?
रकीबों की कतारें है जहाँ खुशियाँ बहुत कम हैं।।
गमजदा हो कर जुल्म को खूब सहते हैं।
थपेड़े सहन करके भी सदा खामोश रहते हैं।
नदी के दो किनारों को कभी मिलना नहीं होता।
मगर वो चूमकर मौजों को दिल की बात कहते हैं।।
सार्थक मुक्तक .
.सार्थक मुक्तक .अच्छा रूपक है नदी के दो किनारों का .
प्यारी बात..
जवाब देंहटाएंवाह,बहुत ख़ूब !
जवाब देंहटाएंक्या बात कही है शास्त्री जी.... बेहद खूबसूरत !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना..
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