धनतेरस के पर्व पर, सजे हुए बाज़ार।
घर में लाओ आज कुछ, नये-नये उपहार।।
झालर-दीपों से सजे, आज सभी के गेह।
मन के नभ से आज तो, बरसे मधुरिम नेह।।
रहे हमेशा देश में, उत्सव का माहौल।
मिष्ठानों का स्वाद ले, बोलो मीठे बोल।।
सरस्वती के साथ हों, लक्ष्मी और गणेश।
तब आएगी सम्पदा, सुधरेगा परिवेश।।
उल्लू बन जाना नहीं, पाकर द्रव्य अपार।
धन के साथ मिले सदा, मेधा का उपहार।।
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शुक्रवार, 1 नवंबर 2013
" दोहे-धनतेरस" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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उल्लू पहले से बने बनते नहीं दो बार :)
जवाब देंहटाएंसुंदर दोहे !
सरस्वती के साथ हों, लक्ष्मी और गणेश।
जवाब देंहटाएंतब आएगी सम्पदा, सुधरेगा परिवेश।।
सुन्दरतम भाव श्रृजन
जवाब देंहटाएंसरस्वती के साथ हों, लक्ष्मी और गणेश।
तब आएगी सम्पदा, सुधरेगा परिवेश।।
बहुत सुन्दर भाव.
नई पोस्ट : दीप एक : रंग अनेक
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (02-11-2013) "दीवाली के दीप जले" चर्चामंच : चर्चा अंक - 1417” पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंधनतेरस की हार्दिक शुभकामना!
दिवाली की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट हम-तुम अकेले
विलासिता की साधन स्वरूपा को सजाना मना है..,
जवाब देंहटाएंआज पूजा गृहाधार कर उसकी आरती गाना मना है.....
सुन्दर प्रस्तुति………
जवाब देंहटाएंकाश
जला पाती एक दीप ऐसा
जो सबका विवेक हो जाता रौशन
और
सार्थकता पा जाता दीपोत्सव
दीपपर्व सभी के लिये मंगलमय हो ……
सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंदीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
सांस्कृतिक पक्ष को उजागर करते दोहे सुन्दर मनोहर।
जवाब देंहटाएंधनतेरस के पर्व पर, सजे हुए बाज़ार।
घर में लाओ आज कुछ, नये-नये उपहार।