“दोहागीत”
रही धरा से सूख अब,
गीत-ग़ज़ल की धार।
धीरे-धीरे घट रहा, लोगों
में अब प्यार।।
कैसे देंगे गन्ध
को, ये काग़ज़ के फूल।
सुमन नोच माली चला,
छोड़ गया अब शूल।।
मन में तो है
कुटिलता, अधरों पर मुस्कान।
अपनेपन की हो यहाँ,
कैसे अब पहचान।।
पहले जैसी हैं
कहाँ, अब निश्छल मनुहार।
धीरे-धीरे घट रहा, लोगों
में अब प्यार।।
बेटों ने परदेश
में, जमा किया धन-माल।
सोनचिरैया इसलिए, हुई
आज कंगाल।
खाते
कुत्ते-बिल्लियाँ, बिस्कुट-बटर-पनीर।
लेकिन बूढ़े पिता
की, आँखों में है नीर।।
शादी होते ही हुआ, अलग-अलग
घर-बार।
धीरे-धीरे घट रहा, लोगों
में अब प्यार।।
सरगम के सुर कर
रहे, आपस में उत्पात।
कदम-कदम पर हो रहा,
घात और प्रतिघात।।
पाल-पोषकर कर दिया,
जिसको युवा बलिष्ठ।
वो ही अब करने लगा,
घर का बहुत अनिष्ट।।
बेटा जीवित बाप से,
माँग रहा अधिकार।
धीरे-धीरे घट रहा, लोगों
में अब प्यार।।
नज़र न आता है
कहीं, अब नैसर्गिक “रूप”।
कृत्रिमता के दौर
में, मिले कहाँ से धूप।।
लोग बुन रहे देश
में, मकड़ी जैसा जाल।
अब दूषित परिवेश
में, जीना हुआ मुहाल।।
मानवीयता का यहाँ,
खसक रहा आधार।
धीरे-धीरे घट रहा, लोगों
में अब प्यार।।
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रविवार, 9 फ़रवरी 2014
"2000वीं पोस्ट-दोहागीत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर ..... २००० वीं पोस्ट की बधाई
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ………२००० वीं पोस्ट की बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक दोहे.......२०००वी पोस्ट के लिए बधाइयां .....
जवाब देंहटाएंइसी तरह बहाते चलिये सुंदर शब्दों की गँगा 2000 से 20000 तक शुभकामनाऐं और बधाई भी बहुत बहुत !
जवाब देंहटाएंमुबारक हो २००० वीं पोस्ट...बहुत ही प्रेरणादायी कार्य...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर एवं सार्थक दोहे !
जवाब देंहटाएं२०००वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई !
~सादर
सुन्दर,हृदयस्पर्शी दोहे...
जवाब देंहटाएं२००० वीं पोस्ट की बधाई!!
सादर
अनु
सुन्दर दोहे, प्यार ही आधार है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर दोहे.
जवाब देंहटाएं