दिन
ज्यों-ज्यों बढ़ने लगा, चढ़ने लगा खुमार।
मौसम
सबको बाँटता, वासन्ती उपहार।१।
चहक उठी
है वाटिका, महक उठा
है रूप।
भँवरे
गुंजन कर रहे, खिली-खिली
है धूप।२।
जैसे-जैसे
आ रहा, प्रेमदिवस
नज़दीक।
वैसे-वैसे
हो रहा, मौसम भी
रमणीक।३।
जोड़ों
पर चढ़ने लगा, प्रेमदिवस
का रंग।
रीत
पुरानी है वही, मगर नये
हैं ढंग।४।
कर्कश
सुर में गा रहे, भौंडे-भौंडे
गीत।।
नये साज
के शोर में, बदल गया
संगीत।५।
बरस रहा
शृंगार है, सरस रहा
मधुमास।
जड़-चेतन
को हो रहा, मस्ती
का आभास।६।
काँवड़
लेने चल पड़े, शंकर जी के भक्त।
शिव
आराधन में हुआ, मन सबका अनुरक्त।७।
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शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014
"दोहे-वासन्ती उपहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएं"कर्कश सुर में गा रहे, भौंडे-भौंडे गीत।।
जवाब देंहटाएंनये साज के शोर में, बदल गया संगीत"
सादर
प्यारी सी कविता, वासंती उपहार की।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता...
जवाब देंहटाएं