कितने हसीन
फूल, खिले हैं पलाश में
फिर क्यों भटक रहे
हैं, चमन की तलाश में
पश्चिम की
गर्म आँधियाँ, पूरब में आ गयी
ग़ाफ़िल हुए
हैं लोग, क्षणिक सुख-विलास में
जब मिल गया
सुराज तो, किरदार मर गया
शैतान सन्त सा
सजा, उजले लिबास में
क़श्ती को
डूबने से, बचायेगा कौन अब
शामिल हैं नयी
पीढ़ियाँ, अब तो विनाश में
किसको सही
कहें अब, और कौन ग़लत है
असली ज़हर
भरा हुआ, नकली मिठास में
काग़ज़ के फूल
में, कभी आती नहीं सुगन्ध
मसले गये सुमन
सभी, भीनी सुवास में
बदला हुआ है “रूप”,
रंग और ढंग भी
अन्धे चलें
हैं देखने, दुनिया उजास में
|
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मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014
"फूल खिले हैं पलाश में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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bahut satik ,sundar gazal
जवाब देंहटाएंNew post चुनाव चक्रम !
New post शब्द और ईश्वर !!!
जब मिल गया सुराज तो, किरदार मर गया
जवाब देंहटाएंशैतान सन्त सा सजा, उजले लिबास में ..
पलाश के लाजवाब मक्ते के साथ सामयिक शेर ... बहुत लाजवाब शास्त्री जी ...
शहरो-शहर दस्तो-सहरा, खुद अपनी ही सनाश में..,
जवाब देंहटाएंभटक रहा क्यूँ फ़िरदौस बादे, बहारों की तलाश में.....
आज की स्थितियाँ व्यक्त करती पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंसुन्दर अप्रतिम सार्थक अभिव्यक्ति सांगीतिक ताल लिए।
जवाब देंहटाएंपश्चिम की गर्म आँधियाँ, पूरब में आ गयी
जवाब देंहटाएंग़ाफ़िल हुए हैं लोग, क्षणिक सुख-विलास में-
sateek v sarthak .aabhar
क़श्ती को डूबने से, बचायेगा कौन अब
जवाब देंहटाएंशामिल हैं नयी पीढ़ियाँ,अब तो विनाश में...
बहुत खूब,सुंदर गजल ...!
RECENT POST - फागुन की शाम.
पश्चिम की गर्म आंधियां,पूरब में आ गईं---
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कहा आपने----