जो पीड़ा में
मुस्काता है, वही सुमन होता है
नयी सोच के साथ
हमेशा, नया सृजन होता है
जब आतीं घनघोर
घटायें, तिमिर घना छा जाता
बादल छँट जाने पर
निर्मल, नीलगगन होता है
भाँति-भाँति के रंग-बिरंगे, जहाँ फूल खिलते हों
भँवरों का उस गुलशन
में, आने का मन होता है
किलकारी की गूँज
सुनाई दे, जिस गुलशन में
चहक-महक से भरा
हुआ. वो ही आँगन होता है
हो करके स्वच्छन्द
जहाँ, खग-मृग विचरण करते
हों
सबसे सुन्दर और
सलोना, वो मधुवन होता है
जगतनियन्ता तो धरती
के, कण-कण में बसता है
चमत्कार जो दिखलाता
है, उसे नमन होता है
कुदरत का तो पल-पल में ही, 'रूप' बदलता जाता
जाति-धर्म की
दीवारों से, बड़ा वतन होता है
|
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बुधवार, 28 मई 2014
"नया सृजन होता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बढ़िया रचना आदरणीय धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
खूबसूरत अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसुंदर व खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना सुन्दर भाव ..बधाई
जवाब देंहटाएंभ्रमर५
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29-05-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1627 में दिया गया है |
जवाब देंहटाएंआभार
बहुत सुन्दर नई रचना |
जवाब देंहटाएंnew post ग्रीष्म ऋतू !
बहुत सुन्दर बता कही हैं ग़ज़ल की मार्फ़त :
जवाब देंहटाएंजगतनियन्ता तो धरती के, कण-कण में बसता है
चमत्कार जो दिखलाता है, उसे नमन होता है
कुदरत का तो पल-पल में ही, 'रूप' बदलता जाता
जाति-धर्म की दीवारों से, बड़ा वतन होता है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति शास्त्रीजी
जवाब देंहटाएं