जो मेरे मन को भायेगा,
उस पर मैं कलम चलाऊँगा।
दुर्गम-पथरीले पथ पर मैं,
आगे को बढ़ता जाऊँगा।।
मैं कभी वक्र होकर घूमूँ,
हो जाऊँ सरल-सपाट कहीं।
मैं स्वतन्त्र हूँ, मैं स्वछन्द हूँ,
मैं कोई चारण भाट नहीं।
कहने से मैं नहीं लिखूँगा,
गीत न जबरन गाऊँगा।
दुर्गम-पथरीले पथ पर मैं,
आगे को बढ़ता जाऊँगा।।
भावों की अविरल धारा में,
मैं डुबकी खूब लगाऊँगा।
शब्दों की पतवार थाम,
लहरों से लड़ता जाऊँगा।
घूम-घूम कर सत्य-अहिंसा
की मैं अलख जगाऊँगा।
दुर्गम-पथरीले पथ पर मैं,
आगे बढ़ता जाऊँगा।।
चाहे काँटों की शय्या हो,
या नर्म-नर्म हो सेज सजे।
सारंगी का गुंजन सुनकर,
चाहे ढोलक-मृदंग बजे।
अत्याचारी के दमन हेतु,
शिव का डमरू बन जाऊँगा।
दुर्गम-पथरीले पथ पर मैं,
आगे बढ़ता जाऊँगा।।
|
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सोमवार, 5 मई 2014
"शब्दों की पतवार थाम लहरों से लड़ता जाऊँगा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंBahut sundar aur prabhavshaali rachana .
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28 -5-21) को "शब्दों की पतवार थाम लहरों से लड़ता जाऊँगा" ( चर्चा - 4079) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
चाहे काँटों की शय्या हो,
जवाब देंहटाएंया नर्म-नर्म हो सेज सजे।
सारंगी का गुंजन सुनकर,
चाहे ढोलक-मृदंग बजे।
अत्याचारी के दमन हेतु,
शिव का डमरू बन जाऊँगा।
दुर्गम-पथरीले पथ पर मैं,
आगे बढ़ता जाऊँगा।।..बहुत ही प्रेरक और उत्साहित कार्य गीत..आदरणीय शास्त्री जी मेरी आपको हार्दिक शुभकामनाएं ।
आदरणीय शास्त्री जी, आप स्वस्थ्य जो रहे है यह जानकर बहुत खुशी हुई। ईश्वर आपको और जल्दी स्वस्थ्य करे यही ईश्वर से प्रार्थना है।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति।
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुंदर सच बेबाक कवि मन चाहता तो ऐसा ही है कि स्वांतसुखाय लिखता रहे ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव हैं आदरणीय ।
बहुत सुंदर रचना आदरणीय
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंवाह....बहुत सुन्दर भाव है ,अप्रतिम रचना मान्यवर।
जवाब देंहटाएं