तपती
गर्म दुपहरी में,
जो राहत
सी दे जाते हैं।
पीताम्बर को
धारण कर,
जीवन
दर्शन सिखलाते हैं।।
जब
सूरज आग उगलता है,
लू
ने जब तन को झुलसाया।
सड़क
किनारे खड़े तपस्वी,
देते
फूलों की छाया।
अमलतास
के पीले झूमर,
मन
को बहुत लुभाते हैं।
पीताम्बर को
धारण कर,
जीवन
दर्शन सिखलाते हैं।।
किसके
लिए बताओ तुमने
सज-धज
कर सिंगार किया।
तुमको
कंचन के गजरों का,
किसने
ये उपहार दिया।
जनसेवा
के अनुभाव तुम्हारे,
मन
में कैसे आते हैं?
पीताम्बर को
धारण कर,
जीवन
दर्शन सिखलाते हैं।।
रामायण
के नायक जैसे,
कर्तव्यों
के स्वामी हो।
स्वार्थपरायण
जग में तुम,
निस्वार्थ
और निष्कामी हो।
आगत
का स्वागत करने में,
फूले नहीं समाते हैं।
पीताम्बर को
धारण कर,
जीवन
दर्शन सिखलाते हैं।।
|
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शुक्रवार, 13 जून 2014
"आगत का स्वागत करने में, फूले नहीं समाते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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पीताम्बरी अमलतास का सजीव चित्रण बहुत सुन्दर दृश्य |
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना व प्रस्तुति , आ. धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंरस पूर्ण ...पूरा न्याय |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी .. इन पेड़ों पौधों को इतना मान दे प्रकृति को अमरत्व दे दिया आप ने
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
भ्रमर ५
सुन्दर रचना...
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