काम-काम को छल रहा, अब तो आठों याम।।
--
लटक
रहे हैं कब्र में, जिनके आधे पाँव।
वो
ही ज्यादा फेंकते, इश्क-मुश्क के दाँव।।
--
मन
की बात न मानिए, मन है सदा जवान।
तन
की हालत देखिए, जिसमें भरी थकान।।
--
नख-शिख
को मत देखिए, होगा हिया अशान्त।
भोगवाद
को त्याग कर, रक्खो मन को शान्त।।
--
रोज फेसबुक
पर लिखो, अपने नवल विचार।
अच्छी
सूरत देख कर, मत फैलाओ विकार।।
--
सीख
बड़ों से ज्ञान को, छोटों को दो ज्ञान।
जीवन
ढलती शाम है, दिन का है अवसान।।
--
अनुभव
अपने बाँटिए, सुधरेगा परिवेश।
नवयुग
को अब दीजिए, जीवन का सन्देश।।
--
भरा
हुआ है सिन्धु में, सभी तरह का माल।
जो
भी जिसको चाहिए, देगा अन्तरजाल।।
--
महादेव
बन जाइए, करके विष का पान।
धरा
और आकाश में, देंगे सब सम्मान।।
|
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गुरुवार, 26 जून 2014
"दस दोहे-अन्तरजाल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुंदर दोहे ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर दोहे !
जवाब देंहटाएंउम्मीदों की डोली !
रोज फेसबुक पर लिखो, अपने नवल विचार।
जवाब देंहटाएंअच्छी सूरत देख कर, मत फैलाओ विकार।।12||
सटीक दोहे-
आभार आदरणीय-
--
जवाब देंहटाएंभरा हुआ है सिन्धु में, सभी तरह का माल।
जो भी जिसको चाहिए, देगा अन्तरजाल।।
महिमा अपार जाल -अंतर की।
अंतरजाल की महिमा अपरम्पार है...
जवाब देंहटाएं