सूरज की
भीषण गर्मी से,
लोगो को
राहत दे जाता।।
लू के गरम
थपेड़े खाकर,
अमलतास
खिलता-मुस्काता।।
डाली-डाली
पर हैं पहने
झूमर से
सोने के गहने,
पीले फूलों
के गजरों का,
रूप सभी के
मन को भाता।
लू के गरम
थपेड़े खाकर,
अमलतास
खिलता-मुस्काता।।
दूभर हो
जाता है जीना,
तन से बहता
बहुत पसीना,
शीतल छाया
में सुस्ताने,
पथिक
तुम्हारे नीचे आता।
लू के गरम
थपेड़े खाकर,
अमलतास
खिलता-मुस्काता।।
स्टेशन पर
सड़क किनारे,
तन पर
पीताम्बर को धारे,
दुख सहकर, सुख बाँटो सबको,
सीख सभी को
यह सिखलाता।
लू के गरम
थपेड़े खाकर,
अमलतास
खिलता-मुस्काता।।
|
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गुरुवार, 12 जून 2014
"अमलतास राहत पहुँचाता" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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कुछ ठंडक पहुँचाती कविता सुंदर ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएं(अमलतास) वृक्ष का सौभाग्य तो देखो ! जिस पर आपने कलम चलाकर उसकी ख्याति को लोगों तक पहुचाया है | सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंमधुर और मोहकता का मिश्रण |
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिख रहें हैं बंधुवर। शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का। बेहद खूबसूरत सौद्देश्य परक अमलतास की सीख।
जवाब देंहटाएंस्टेशन पर सड़क किनारे,
तन पर पीताम्बर को धारे,
दुख सहकर, सुख बाँटो सबको,
सीख सभी को यह सिखलाता।
लू के गरम थपेड़े खाकर,
अमलतास खिलता-मुस्काता।।
सृष्टि की लीला न्यारी है...जब पत्ते भी छाँव मांगने लगते हैं...अमलतास फूलों से भर जाता है...
जवाब देंहटाएं