प्रेम-प्रीत के रंग ले, आया है ऋतुराज।
मना रहा है प्रणय दिन, होकर मस्त समाज।।
चोंच कपोत लड़ा रहे, करते दिल की बात।
मिलकर यापन कर रहे, जन्म-ज़िन्दगी साथ।।
शाखाओं पर आ गये, नवपल्लव परिधान।
मौसम है मधुमास का, पंछी गाते गान।।
फूलों-कलियों पर चढ़ा, अब उपवन में रंग।
वासन्ती परिधान के, बड़े निराले ढंग।।
सेमल पर छाये सुमन, वन में खिला पलाश।
सूरज देता ऊर्जा, निर्मल है आकाश।।
सबके लिए बसन्त का, मौसम है अनुकूल।
फागुन में मन मोहते, ये पलाश के फूल।।
अंगारा सेमल हुआ, वन में खिला कपास।
मन के उपवन में उठी, भीनी मन्द-सुवास।।
सरसों फूली खेत में, पीताम्बर को धार।
देख अनोखे रूप को, भ्रमर करे गुंजार।।
कुदरत ने पहना दिये, नवपल्लव परिधान।
गंगा तट पर हो रहा, शिवजी का गुणगान।।
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रविवार, 28 जनवरी 2018
दोहे "नवपल्लव परिधान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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