मौसम अच्छा हो गया, हुआ शीत का अन्त।
पहन पीत परिधान को, खुश हो रहा बसन्त।।
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पेड़ों ने पतझाड़ में, दिये पात सब झाड़।
हिम से अब भी हैं ढके, चोटी और पहाड़।।
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नवपल्लव की आस में, पेड़ तक रहे बाट।
भक्त नहाने चल दिये, गंगा जी के घाट।।
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युगलों पर चढ़ने लगा, प्रेमदिवस का रंग।
बदला सा परिवेश है, बदल गये हैं ढंग।।
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उपवन में गदरा रहे, पौधों के अब अंग।
मधुमक्खी लेकर चली, कुनबा अपने संग।।
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फूली सरसों खेत में, पहन पीत परिधान।
गुनगुन की गुंजार से, भ्रमर गा रहे गान।।
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गेहूँ और मसूर भी, लहर-लहर लहराय।
अपनी खेती देखकर, कृषक रहे मुसकाय।।
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बुधवार, 31 जनवरी 2018
दोहे "बदल गये हैं ढंग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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