नफरत का बढ़ जाये
जब, आपस में अनुपात।
तब तक कभी न
कीजिए, कूटनीति की बात।।
जब तक मन में
प्रीत के, उगें नहीं ज़ज़्बात।
फलीभूत होगी नहीं,
तब तक कोई बात।।
आ जायेगी समझ में,
जब उनको औकात।
हो पायेगी कारगर, तभी
काम की बात।।
होती मतलब के लिए,
चिकनी-चुपड़ी बात।
बातों में आकर कभी,
देना मत खैरात।।
सीमाओं पर देश की,
सैनिक हैं तैनात।
बैरी से सीधे करो,
गोली से अब बात।।
बैरी कायर की तरह,
जब करता हो घात।
रुकना शह देकर नहीं,
करना देना तब मात।।
जो सेना के शिविर
में, छिप कर करते घात।
अब होनी ही चाहिए,
उनकी नष्ट जमात।।
बन्द कीजिए दुष्ट
से, कूटनीति की बात।
बता दीजिए नीच को,
अब उसकी औकात।।
कहता शासन से यही,
नगर और देहात।
सुलह-सफाई की नहीं,
बैरी से हो बात।।
|
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शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018
दोहे "कूटनीति की बात" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बहुत सुन्दर दोहे।
जवाब देंहटाएंbahut sundar dohe
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