आवारा लगने लगी, प्रेमदिवस पर प्रीत।
सागर तट पर आ गये, लोग निभाने रीत।२।
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प्रेम दिवस में हो रहा, खेल बहुत संगीन।
शब्द-ज़ाल में फँस गई, नाजुक उम्र हसीन।३।
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नादानी में कभी मत, करना जग में प्यार।
बुरे-भले को सोचकर, ही करना इकरार।४।
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तोता-तोती पर चढ़ा, प्रेम-दिवस का रंग।
दोनों ही सहला रहे, इक-दूजे के अंग।५।
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चहक रहे हैं बाग में, कलियाँ-सुमन अनेक।
धीरज और विवेक से, चुनना केवल एक।६।
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कंकड़-काँटों से भरी, नहीं राह अनुकूल।
लेकर प्रीत-कुदाल को, सभी हटाना शूल।७।
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मन-विचार मिल जाय जब, समझो तभी बसन्त।
मास-दिवस मधुमास है, समझो आदि न अन्त।८।
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सुख सरिता बहती रहे, धार न हो अवरुद्ध।
निशि-दिन प्रेम प्रवाह से, इसको करो समृद्ध।९।
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दिल से मत तजना कभी, प्रीत-रीत उद्गार।
सारस से लो सीख तुम, क्या होता है प्यार।१०।
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चिकनी-चुपड़ी देखकर,मत टपकाओ लार।
सोच-समझकर ही सदा, देना कुछ उपहार।११।
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पश्चिम की है सभ्यता, प्रेमदिवस का वार।
लेकिन अपने देश में, प्रतिदिन प्रेम अपार।१२।
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कभी नहीं जो मिट सके, बरसाओ वह रंग।
सिखलाओ संसार को, प्रेम-प्रीत के ढंग।१३।
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आडम्बर से युक्त है, प्रेमदिवस का खेल।
चमक-दमक में खो गया, अब सुमनों का मेल।१४।
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बुधवार, 14 फ़रवरी 2018
दोहे "प्रेमदिवस पर प्रीत" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर दोहे
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15.02.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2881 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद