अटल बिहारी की नहीं, मिलती कहीं मिसाल।
लीन हो गया शून्य में, भारत माँ का लाल।।
हंस पलायन कर गया, उजड़ गया है नीड़।
दर्शन करने देह का, उमड़ी भारी भीड़।।
आने-जाने के नहीं, नियत दिवस-तारीख।
अटल बिहारी दे गये, सारे जग को सीख।।
कथनी-करनी में अटल, सदा रहे अनुरक्त।
शब्दों से अलमस्त थे, धन से बड़े विरक्त।।
अटल बिहारी हों भले, चिर निद्रा में लीन।
पुनर्जन्म लेंगे यहाँ, सबको यही यकीन।।
देशभक्ति-दलभक्ति के, संगम थे अभिराम।
अमर रहेगा जगत में, अटल आपका नाम।।
अस्त हो गया गगन से, स्वस्थ हास-परिहास।
लोकतन्त्र में काव्य का, मेला हुआ उदास।
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शुक्रवार, 17 अगस्त 2018
दोहे "उजड़ गया है नीड़" श्रद्धांजलि अटलबिहारी वाजपेई
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जवाब देंहटाएंहर मन पर लिखते रहें ,अटल सरीखे नाम
अस्त हो गया गगन से, स्वस्थ हास-परिहास।
जवाब देंहटाएंलोकतन्त्र में काव्य का, मेला हुआ उदास।
सच लोकतंत्र में स्वस्थ काव्य का मेला फिर दिखने को नहीं मिलने वाला
राजनीति के दलदल में खिला एक निष्कपट कमल मुरझा गया,
बहुत अच्छी भावपूर्ण श्रद्धांजलि, नमन अटल जी को!
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विनम्र श्रद्धांजलि - श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी - ब्लॉग बुलेटिन परिवार में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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