"कुदरत का कानून"
कुछ दिनों पहले मेरे बाँयीं
ओर के जबड़े की ऊपर की एक दाढ़ खुक्खल हो कर टूट गयी थी। जिससे खाना खाते समय
भोजन का अंश उसमें फँस जाता था। इसलिए मैं भोजन को चबाने का काम दायी ओर से ही
करता था। कुछ समय बाद दायीं ओर की नीचे की एक दाढ़ हिलने लगी लेकिन खाना खाने
में कोई दिक्कत नहीं होती थी।
कल अचानक दायीं ओर की इस दाढ़
को ऊपर वाली दाढ़ ने इस प्रकार कुचला कि यह एक और को झुक गयी और टूट गयी। मन में
बहुत चिन्ता हुई और इस चिन्ता ने सोचने को मजबूर कर दिया कि आखिर अपने ही घर के
अभिन्न साथी को दूसरे साथी घर से बाहर क्यों कर देते हैं?
तभी विचार आया कि जब घर का
कोई सदस्य मर जाता है तो उसे जल्दी से जल्दी घर से बाहर कर दिया जाता है। शायद
इसीलिए मेरे मुख रूपी घर से एक सदस्य के निष्प्राण होने पर घर के दूसरे सदस्यों
ने यह किया होगा। अर्थात कुदरत के कानून से ही लौकिक कानून बने होंगे।
समझ न आया आज तक, कुदरत का विज्ञान।
निर्बल को जीने नहीं, देते हैं बलवान।।
कुदरत के कानून से, मानव है अंजान।
इसीलिए अभिमान में, रहता है इंसान।।
जग में सब कुछ है सुलभ, रखना हरदम ध्यान।
कर्मों के अनुसार ही, मिले मानअपमान।।
जीते जी आया नहीं, कभी गाय का ध्यान।
मर जाने के बाद क्यों, करते हैं गोदान।।
मानव कितना ही रहे, बनकर अफलातून।
दया कभी करता नहीं, कुदरत का कानून।।
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 21 अगस्त 2018
कथा और दोहे "कुदरत का कानून" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
@कुदरत के कानून से, मानव है अंजान............और जब आँख खुलती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23.8.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3072 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद