सावन आने पर धरा, करती है शृंगार।
हरा-भरा परिवेश है, सावन का उपहार।१।
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चोटी-बिन्दी-मेंहदी, आपस में बतियाय।
हर्ष और अनुराग में, सुहागिनें बौराय।२।
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तीजों के त्यौहार पर, कर सोलह सिंगार।
आज नारियाँ हर्ष से, गातीं मेघ-मल्हार।३।
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आँगन में झूले पड़े, झूल रहीं हैं नार।
घेवर-फेनी से सजा, हलवाई बाजार।४।
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नागपञ्चमी पर लगी, देवालय में भीड़।
कानन में सब खोजते, नागदेव के नीड़।५।
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सोमवार के दिन सभी, मन्दिर जाते लोग।
शिव-शंकर को प्यार से, लगा रहे हैं भोग।६।
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काँवड़ लेकर आ रहे, श्रद्धा से अनुरक्त।
हर-हर, बम-बम घोष को, करते सारे भक्त।७।
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गंगा जी के घाट पर, लम्बी लगी कतार।
लोग नहाने जा रहे, हर-हर के हरद्वार।८।
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आता सावन मास में, रक्षाबन्धन पर्व।
जब करती बहनें तिलक, भाई करता गर्व।९।
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बहनें करतीं कामना, भाई हो खुशहाल।
भाई की लम्बी उमर, माँग रहीं हर साल।१०।
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मंगलवार, 7 अगस्त 2018
दोहे "सावन का उपहार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (08-08-2018) को "सावन का सुहाना मौसम" (चर्चा अंक-3057) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
उम्दा रचना !
जवाब देंहटाएंसावन का आँखों देखा हाल बयान करते हैं शास्त्रीजी के दोहे :
जवाब देंहटाएं--
तीजों के त्यौहार पर, कर सोलह सिंगार।
आज नारियाँ हर्ष से, गातीं मेघ-मल्हार।३।
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आँगन में झूले पड़े, झूल रहीं हैं नार।
घेवर-फेनी से सजा, हलवाई बाजार।४।
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंप्रकृति की अनुपम छटा सावन में देखने को मिलती हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सामयिक रचना