पूज्य पिता जी आपका, वन्दन शत-शत बार।
बिना आपके कुछ नहीं, जीवन का आधार।।
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बचपन मेरा खो गया, हुआ वृद्ध मैं आज।
सोच-समझकर अब मुझे, करने हैं सब काज।।
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जब तक मेरे शीश पर, रहा आपका हाथ।
लेकिन अब आशीष का, छूट गया है साथ।।
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तारतम्य टूटा हुआ, उलझ गये हैं तार।
कौन मुझे अब करेगा, पिता सरीखा प्यार।।
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माँ ममता का रूप है, पिता सबल आधार।
मात-पिता सन्तान को, करते प्यार अपार।।
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सूना सब संसार है, सूना घर का द्वार।
बिना पिता जी आपके, फीके सब त्यौहार।।
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तात मुझे बल दीजिए, उठा सकूँ मैं भार।
एक-नेक बनकर रहे, मेरा ये परिवार।।
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शुक्रवार, 14 जून 2019
दोहे "पूज्य पिता जी आपका, वन्दन शत-शत बार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (15 -06-2019) को "पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक- 3367) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
माँ ममता का रूप है, पिता सबल आधार।
जवाब देंहटाएंमात-पिता सन्तान को, करते प्यार अपार।।
सच ,पिता के बिना हम आधारहीन हो जाते हैं ,बहुत सुंदर ,मार्मिक चित्रण ,पितृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत सुन्दर शास्त्री जी. जीवन में पिता की महत्ता को न जाने क्यों माँ की महत्ता के सामने भुला सा दिया जाता है. मेरे अपने जीवन में मेरे पिताजी का सर्वाधिक महत्त्व रहा है. अपने पिताजी के प्रति आपकी भावनाएं मेरे पिता के प्रति मेरी भावनाओं को ही व्यक्त करती हैं.
जवाब देंहटाएंसुन्दर दोहे
जवाब देंहटाएं