धरा-गगन मिलते जहाँ, होता
वही दिगन्त।।
नद-नाले सूखे पड़े, सूख गये हैं ताल।
गरमी के कारण हुए, जन्तु सभी बेहाल।।
मौसम अब तक था नहीं, लोगों
के अनुरूप।
अनल बरसता गगन से, बदन
जलाती धूप।।
सूखे बाग-तड़ाग सब, उड़ती
भू पर धूल।
खेतों में पसरे हुए, चारों
ओर बबूल।।
तकते सब आकाश को, बरसे सरस फुहार।
इन्द्रदेव की कर रहा, सारा
जग मनुहार।।
बादल छाये गगन पर, सूरज हुआ विलीन।
बारिश आने का हुआ, सबको आज यकीन।।
लगा रहे मन में सभी, बरखा का अनुमान।
पीला नभ ये कह रहा, आयेगा तूफान।।
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सोमवार, 17 जून 2019
दोहे "बरसे सरस फुहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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