-- जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए, दे रहे हैं हमें शुद्ध-शीतल पवन! खिल उठा है इन्हीं से हमारा चमन!! -- आदमी के सितम-जुल्म को सह रहे, परकटे से शज़र निज कथा कह रहे, रत्न अनमोल हैं ये हमारे लिए, कर रहे हम इन्हीं का हमेशा दमन! खिल उठा है इन्हीं से हमारा चमन!! -- ये हमारे लिए मुफ्त उपहार हैं, कर रहे देश-दुनिया पे उपकार हैं, ये बचाते धरा को हमारे लिए, रोग और शोक का होता इनसे शमन! खिल उठा है इन्हीं से हमारा चमन!! -- ये हमारी प्रदूषित हवा पी रहे, घोटकर हम इन्हीं को दवा पी रहे, तन हवन कर रहे ये हमारे लिए, इनके तप-त्याग को है हमारा नमन! खिल उठा है इन्हीं से हमारा चमन!! -- |
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गुरुवार, 20 जनवरी 2022
नवगीत "खिल उठा है इन्हीं से हमारा चमन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (२१-०१ -२०२२ ) को
'कैसे भेंट करूँ? '(चर्चा अंक-४३१६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत ही शानदार और सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआज तो चमन उजड़ रहे हैं और सहरा मुस्कुरा रहे हैं.
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंये हमारे लिए मुफ्त उपहार हैं,
जवाब देंहटाएंकर रहे देश-दुनिया पे उपकार हैं,
ये बचाते धरा को हमारे लिए,
रोग और शोक का होता इनसे शमन!
खिल उठा है इन्हीं से हमारा चमन!!
वाह!!!
लाजवाब गीत पेड़ पौधों पर।
पेड़ों की महत्ता पर सुंदर गीत ।
जवाब देंहटाएंप्रेरक रचना।
बहुत बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएं