-- जब सूरज यौवन में भरकर अनल धरा पर बरसाता है। लाल अँगारा रूप बनाकर, तब गुलमोहर लुभाता है।। -- मुस्काता है सौम्य सन्त सा, कुदरत की क्या माया है। खुद गरमी को खाकर देता, सबको शीतल छाया है। थका मुसाफिर इस छाया में, थोड़ा समय बिताता है। लाल अँगारा रूप बनाकर, तब गुलमोहर लुभाता है।। -- बहुत दूर से सड़क किनारे, छवि जिनकी दिख जाती है। पत्ते हैं या सुर्ख सुमन हैं आँखे धोखा खाती हैं। नगरों की नीरस गलियों में, आशायें उपजाता है। लाल अँगारा रूप बनाकर, तब गुलमोहर लुभाता है।। -- बदन जलाती जब लू चलती, बहता है तब बहुत पसीना। मई-जून का मौसम बैरी, जिसने जीवन सुख छीना। मौन तपस्वी अपनी बातें, संकेतों में कह जाता है। लाल अँगारा रूप बनाकर, तब गुलमोहर लुभाता है।। -- |
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बुधवार, 17 मई 2023
गीत "गुलमोहर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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