खिली रूप की धूप "दोहा संग्रह"
डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरे नज़रिये से
डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' हिन्दी साहित्य में जाना पहचाना नाम है। पेशे से आयुर्वेदिक डॉक्टर रूपचंद्र जी खटीमा स्थित अपने आवास में अपना क्लीनिक चलाते हैं।
आप राजनीति में भी सक्रिय रहे हैं। समकालीन साहित्य में एक जाना पहचाना नाम और ब्लॉगिन की दुनिया में भी वह अपना विशेष स्थान रखते हैं। 1996 से 2004 तक उच्चारण पत्रिका का संपादन भी किया और 20 से अधिक ब्लाॅगों में निरंतर लेखन किया। आप आज भी अपने ब्लॉग उच्चारण पर सुबह सवेरे कुछ नया लिखते हैं। दुनिया भर में हिंदी ब्लॉगिंग में भी आप दसवां स्थान रखते हैं। 2010 का सर्वश्रेष्ठ उत्सवी गीतकार सम्मान उनके नाम रहा। 2011 में परिकल्पना सम्मान दिल्ली द्वारा सर्वश्रेष्ठ गीतकार का सम्मान, उत्कर्ष साहित्यिक मंच दिल्ली द्वारा कबीर सम्मान दिया गया, संस्कार भारती द्वारा काव्य शिरोमणि। आकाशवाणी रामपुर और हेलो हल्द्वानी सामुदायिक रेडियो के माध्यम से अनेकों बार काव्य पाठ और परिचर्चा भी प्रसारित हुईं।
आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें सुख का सूरज, नन्हे सुमन, धरा के रंग, हंसता गाता बचपन, कदम कदम पर घास, खिली रूप की धूप, स्मृति उपवन, गज़लियात- ए- रूप, प्रीत का व्याकरण, टूटते अनुबंध आदि प्रमुख हैं। आपने 'काव्य रश्मियां' नाम से एक साझा संकलन का संपादन भी किया है।
इसके साथ साथ आपने विदेशी भाषा की कविताओं के अनुवाद भी किए हैं। सबसे बड़ी बात कवि का तकनीकी ज्ञान गज़ब का है। एक उम्र के बाद जब इंसान नई चीजों को सीखने में कोताही बरतने लगता है, वहीं शास्त्री जी अपने को हर तरह से अपडेट रखते हैं।
शास्त्री जी के द्वारा लिखे गए दोहों ने ही मेरा उनसे परिचय करवाया। दोहा काव्य जगत की महत्वपूर्ण विधा है। यह अर्ध्य सम मात्रिक छंद है जो दो पंक्तियों का होता है। इसमें चार चरण माने जाते हैं। इसके विषम चरणों प्रथम तथा तृतीय में तेरह- तेरह मात्राएँ और सम चरणों द्वितीय तथा चतुर्थ में ग्यारह- ग्यारह मात्राएँ होती हैं। गागर में सागर भरना आप खूब जानते हैं। बहुत ही गंभीर और वैविध्य पूर्ण बात को दो पंक्तियों में दोहे के माध्यम से आप प्रस्तुत कर जाते हैं। आपके छंदबद्ध दोहे गाकर पढ़ने का आनंद भी अलग है। 'खिली रूप की धूप' दोहा संग्रह पढ़ने का अवसर मिला। इस संग्रह में विभिन्न विषयों पर दोहों के माध्यम से कवि ने लेखनी चलाई है। मुझे लगता है कि भूत और वर्तमान का कोई भी विषय अछूता नहीं रहा है। यहां तक की अपने दोहों के माध्यम से कवि ने भविष्य को लेकर भी कई बार चेताया है। जैसे पानी की समस्या, पेड़ों का कटान आदि।
जीवन के हर पहलू पर कवि ने बहुत ही बेबाकी से अपनी कलम चलाई है। रिश्ते, माता पिता, दोस्ती, सत्य, योग, त्योहारों, पर्यावरण के अंतर्गत आने वाले सभी कारक, पानी, ऋतुएं, धूप और बारिश, जीवन के रंग जैसे विषयों पर भी आपकी लेखनी चली। घटते जंगलों की पीड़ा को कवि इस तरह व्यक्त करते हैं-
घटते जाते भूमि से, बरगद पीपल नीम।
इसीलिए तो आ रहे, घर में रोज़ हकीम।।
इसी तरह चट्टानों के कटान पर वे कहते हैं-
दोहन हुआ पहाड़ का, गरज रहा भूचाल।
इंसानी करतूत से, जीवन है बेहाल।।
बदलती जीवन शैली को लेकर एक दोहा देखिए-
गौ माता भूखी मरे, घर-घर पलते स्वान।
मात-पिता का हो रहा, पग पग पर अपमान।।
धर्म कर्म को लेकर कवि कहते हैं-
अब मजहब के नाम पर होते ओछे कर्म।
मुल्ला पंडित पादरी के चंगुल में धर्म।।
धार्मिक भेदभाव को लेकर एक और दोहा-
देख दुर्दशा धर्म की, हैरत में भगवान।
फिरकों में अब बंट गए राम और रहमान।।
दोहों में कहीं भी दुरूहता नहीं पाई जाती। कवि बहुत ही सरल शब्दों में अपनी बात पाठकों तक पहुंचाने में सफल होते हैं। आपको छंद शास्त्र का मर्मज्ञ कहना गलत ना होगा।
छम-छम पानी बरसता, बादल करते शोर।
हरियाली बिखरी हुई ,धरती पर चहुँ ओर।।
उपरोक्त दोहे में सरसता की मिठास भी छम-छम करती प्रतीत होती है।
लोकतंत्र, भ्रष्टाचार, फैशन, हिंदी का भविष्य और वर्तमान, मातृभाषा, शिक्षक इन सभी पहलुओं को लेकर भी उन्होंनेछंद रचना की है।
फैशन को लेकर गए कहते हैं-
छोटे कपड़े हो गए, दिखता नंगा गात।
बिन पतझड़ झड़ने लगे, नए पुराने पात।।
आपकी कविता समाज का दर्पण बनकर उसे पाठकों के सामने तो रखती ही है, साथ ही चेतावनी भी दे जाती है। क्योंकि मैथिलीशरण गुप्त जी के शब्दों में-
"केवल मनोरंजन न कभी का कर्म होना चाहिए,
उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए।"
वह साहित्य ही क्या जिसमें नारी की चर्चा न हो। शास्त्री जी ने नारी की महिमा पर भी बहुत ही मार्मिक दोहे लिखे हैं-
सहती जुल्म समाज के, दुनिया भर में नार।
अग्नि परीक्षा में गए, जीवन कई हजार।।
यह दोहा संग्रह आरती प्रकाशन, लाल कुआँ नैनीताल से प्रकाशित हुआ है। पठनीय और विचारणीय है। मैं लेखक के स्वस्थ और दीर्घायु होने की कामना करते हुए उम्मीद करती हूं कि वह स्वास्थ्य जगत में सेवा देने के साथ-साथ मां शारदे की भी सेवा में यूँ ही तत्पर रहेंगे।
अमृता पांडे
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सोमवार, 8 मई 2023
समीक्षा "खिली रूप की धूप-दोहा संग्रह" (अमृता पांडे)
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