-- मत-मजहब के नाम पर, लड़वाना हो बन्द। धर्म, सिखाता है यही, बाँटो कुछ आनन्द।1। -- गण-गणना पर है टिकी, कविताओं की डोर। छन्दों में करना नहीं, तुकबन्दी कमजोर।2। -- धन के सब स्वामी बनो, मत कहलाओ दास। जो बन जाते दास हैं, रहते वही उदास।3। -- अपने नवल विचार को, लिखते हैं जो नित्य। उनके ही साहित्य में, मिलता है लालित्य।4। -- जैसे कुहरा चीरकर, उगता है आदित्य। वैसे कुण्ठा में उगे, मानस में साहित्य।5। -- दर्पण से छल कर रही, अब खुद की तसवीर। कृष्ण आजकल लाज का, खींच रहे हैं चीर।6। -- दानवता का कर रहा, मानव आविष्कार। प्रजातन्त्र में हो रहे, पैदा अब मक्कार।7। -- राजनीति के सिन्धु में, चली झूठ की नाव। भाषण की पतवार से, लड़ते लोग चुनाव।8। -- |
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मंगलवार, 2 मई 2023
दोहे "बाँटो कुछ आनन्द" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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