-- अन्तस के कुछ अनुभावों से, करता हूँ माँ का अभिनन्दन। शब्दों के अक्षत-सुमनों से, करता हूँ मैं माँ का वन्दन।। -- मैं क्या जानूँ लिखना-पढ़ना, नहीं जानता रचना गढ़ना, तुम हो भाव जगाने वाली, नये बिम्ब उपजाने वाली, मेरे वीराने उपवन में आ जाओ माँ बनकर चन्दन। शब्दों के अक्षत-सुमनों से, करता हूँ मैं माँ का वन्दन।। -- कितना पावन माँ का नाता, तुम वाणी हो मैं उदगाता, सुर भी तुम हो, तान
तुम्हीं हो, गीत तुम्हीं हो, गान
तुम्हीं हो, वीणा की झंकार सुना दो, तुम्हीं साधना, तुम
ही साधन। शब्दों के अक्षत-सुमनों से, करता हूँ मैं माँ का वन्दन।। -- मुझको अपना कमल बना लो, सेवक को माता अपना लो, मेरी झोली बिल्कुल खाली, दूर करो मेरी कंगाली, ज्ञान सिन्धु का कणभर दे दो, करता हूँ माता आराधन। शब्दों के अक्षत-सुमनों से, करता हूँ मैं माँ का वन्दन।। -- |
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रविवार, 18 अगस्त 2024
वन्दना "माँ का वन्दन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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