(चित्र काल्पनिक है) मैं उस समय ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ता था। जीवविज्ञान विषय की क्लास में मेरे साथ कुछ लड़कियाँ भी पढ़तीं थीं। परन्तु मैं बेहद शर्मीला था। इसी लिए कक्षाध्यापक ने मेरी सीट लड़कियों की बिल्कुल बगल में निश्चित कर दी थी। कक्षा में सिर्फ एक ही लड़का मेरा दोस्त था।
उसका नाम राम सिंह था। था तो वह काला-कलूटा ही परन्तु लड़कियाँ उसे बहुत पसन्द
करती थी। क्योंकि राम सिंह की आर्ट बहुत अच्छी थी। वह यदा-कदा जीव-विज्ञान के
चित्र उनको बना कर दे देता था। मेरे बिल्कुल बगल में ही एक लड़की बैठती थी।
उसका नाम मधु था। भोली सी सूरत, साधारण रूप-रेखा। मैं
उससे कभी बात नही करता था। लेकिन वो मुझसे बात करने को उतावली रहती थी। बहुत
दिनों तक यही दिनचर्या चलती रही। एक दिन मैं रात को 8 बजे के लगभग रेलवे
स्टेशन पर किसी सगे सम्बन्धी को रेल-गाड़ी में बैठा कर आ रहा था। थोड़ी दूर ही चला था कि मैंने देखा कि- राम
सिंह इस लड़की से बदतमीजी कर रहा था। वैसे तो मैं बड़ा शर्मीला था और एकाकी था।
परन्तु न जाने कहाँ से मुझमें इतना साहस आ गया कि मैंने राम सिंह की अच्छी तरह
से धुलाई कर दी। बात आई-गयी हो गयी। दो दिन बाद मैं क्या देखता हूँ कि मधु और
उसकी माँ अचानक मेरे घर पर आ गयीं। मेरी माता जी को उन्होंने सारा वाकया सुनाया
और मेरी प्रशंसा करने लगे। माता जी को यह सुन कर बड़ा आश्चर्य भी हुआ
कि मेरा लड़का इतना शान्त और सीधा है फिर इसमें इतना साहस कहाँ से आ गया। लेकिन
उन्हें मेरी यह करतूत अच्छी लगी। फिर तो मधु के परिवार से हमारे रिश्ते ज्यादा
गहरे हो गये। तब से रक्षाबन्धन पर
प्रति वर्ष मधु मुझे राखी बाँधने लगी। कुछ समय के बाद उसकी
शादी धामपुर में एक सम्भ्रान्त परिवार में हो गयी। आज उसकी आयु 70 वर्ष से अधिक हो गयी है। घर-परिवार में नाती-पोते भी हैं। परन्तु रक्षाबन्धन पर्व पर उसकी राखी आज भी मुझे डाक से अवश्य आती है। |
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बुधवार, 21 अगस्त 2024
लघुकथा "मुहबोली बहन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर संस्मरण !
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर। ये बंधन कभी टूटे ना।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंसुन्दर
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