कलियाँ मसल रहे हैं डाकू, वीराना सा हुआ चमन। सौरभ सुमन कहाँ से आयें, उजड़ा है प्यारा उपवन।। सोने की चिड़िया के कुन्दन पंख सलोने नोच लिए, रत्न-जड़ित सिंहासन, धोखा देकर स्वयं दबोच लिए, घर लगता सूना-सूना सा, मरुथल सा लगता आँगन। सौरभ सुमन कहाँ से आयें, उजड़ा है प्यारा उपवन।। गोली - बारूदों को, भोली - भाली बस्ती झेल रही, अवश-विवश से मौत अनर्गल पल-पल होली खेल रही, पूजन-वन्दन है पिंजड़े में, घूम रहा आजाद दमन। सौरभ सुमन कहाँ से आयें, उजड़ा है प्यारा उपवन।। केसर की क्यारी को कैसे, मिल पायेगा छुटकारा, छल-बल के ताने-बाने का, कौन करेगा निबटारा, गिद्ध-दृष्टि से कैसे बच पायेगा मेरा सरल सुमन। सौरभ सुमन कहाँ से आयें, उजड़ा है प्यारा उपवन।। |
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बुधवार, 4 नवंबर 2009
"उजड़ा है प्यारा उपवन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत सुन्दर!बहुत सही।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
bahut badiya ati sundar
जवाब देंहटाएंjyotishkishore.blogspot.com
''रत्न-जड़ित सिंहासन, धोखा देकर स्वयं दबोच लिए''
जवाब देंहटाएंजो भी इस सिंघासन को
पाता है वह शोषक हो जाता है |
सुन्दर कविता ...
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना . आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर,सुन्दर भावपूर्ण !!
जवाब देंहटाएंगोली - बारूदों को, भोली - भाली बस्ती झेल रही,
जवाब देंहटाएंअवश-विवश से मौत अनर्गल पल-पल होली खेल रही,
पूजन-वन्दन है पिंजड़े में, घूम रहा आजाद दमन।
सौरभ सुमन कहाँ से आयें, उजड़ा है प्यारा उपवन।।
bhaavpoorn shabdon ke saath khoobsoorat rachna.....
बेहद सुरुचिपुर्ण रचना, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
वाह.....
जवाब देंहटाएंक्या खूब पंक्तियाँ रच दी आपने.......
bahut khoob
जवाब देंहटाएंआदरणीय मयंक जी,
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
ज़्यादा तो मैं नहीं जानता लेकिन इतना अवश्य कह सकता हूँ कि आप लामिसाल हैं, कमाल हैं, कमाल हैं, कमाल हैं । हर बार आपको बाँच कर भीतर तक एक सरसराहट होती है जैसे कई दिनों के प्यासे व्यक्ति को शीतल जल मिल जाए तो पीते समय कैसे अपने भीतर वह शीतल स्पर्श अनुभवता है ..वही हाल मेरा हो जाता है आप कि कविता बाँच कर .........
सोने की चिड़िया के कुन्दन पंख सलोने नोच लिए,
रत्न-जड़ित सिंहासन, धोखा देकर स्वयं दबोच लिए,
घर लगता सूना-सूना सा, मरुथल सा लगता आँगन।
सौरभ सुमन कहाँ से आयें, उजड़ा है प्यारा उपवन।।
वाह !
वाह !
_____अभिनन्दन आपका हज़ार हज़ार बार दिल से
लाजवाब। बेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएंसोने की चिड़िया के कुन्दन पंख सलोने नोच लिए,
जवाब देंहटाएंरत्न-जड़ित सिंहासन, धोखा देकर स्वयं दबोच लिए केसर की क्यारी को कैसे, मिल पायेगा छुटकारा,
छल-बल के ताने-बाने का, कौन करेगा निबटारा,,
सुन्दर भावपूर्ण रचना . शुभकामनाएं.
खूब लिखा है।
जवाब देंहटाएंऊँची-ऊँची इमारतों में उपवन सिमटा गुलदस्तों
शुक्र करते हैं कि यह अब तक सजता है सस्तों में
आप जैसों की कृपा से उपवन मन में सज जाता है।
वरना अब तो उपवन भी सजता है प्लास्टिकों के फूलों से।।
सुन्दर कविता शास्त्री जी ...धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिखा आप ने .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सुंदरम्
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और सठिक रचना लिखा है आपने! उम्दा रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना !
जवाब देंहटाएंek bahut hi utkrisht rachna......kitna gahan likhte hain aap.........aapki lekhni ko naman.
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