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गुरुवार, 12 नवंबर 2009
"दो मुक्तक" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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दाल-आटा, शाक-फल से भी कुपोषण हो रहा।
जवाब देंहटाएंकुछ नही मौलिक बचा है, पिष्ट-पेषण हो रहा।
क्या लिखें, किसको सुनाएँ, कौन छापेगा भला?
देवियों का मन्दिरों में, रोज शोषण हो रहा।
bahut hi gahri baat kahi aapne.....
bahut badhiya sach
जवाब देंहटाएंदेवियों का मन्दिरों में, रोज शोषण हो रहा।।
जवाब देंहटाएंबिडम्बना है ये तो. वाकई दुखद स्थिति है.
सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने
मुक्तक माध्यम सही लिया गहरी बात कहने को..वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत गहरी बात कह दी आप ने इन मुक्तक मै.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
waah..........
जवाब देंहटाएंaaj aap kuchh hat ke mood me hain.....
yani mousam karvat badal raha hai khatima me bhi...
abhinandan !
आपका सृजनात्मक कौशल हर पंक्ति में झांकता दिखाई देता है।
जवाब देंहटाएं"दाल-आटा, शाक-फल से भी कुपोषण हो रहा।
जवाब देंहटाएंकुछ नही मौलिक बचा है, पिष्ट-पेषण हो रहा।
क्या लिखें, किसको सुनाएँ, कौन छापेगा भला?
देवियों का मन्दिरों में, रोज शोषण हो रहा।। "
dard ke saath gaherai bhari baat aapne sahaj sabdo me kahe di bahut hi badhiya ..sunder rachana ke liye aapka aabhar "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
मैं तो बस यह कह सकता हूँ कि मैंने हमेशा ही आप की रचनायों में अपने दिल की बात को पढ़ा है सो आपका मुरीद हूँ !
जवाब देंहटाएंआज भी कोई अपवाद नहीं है ! आपका बहुत बहुत आभार मुझ जैसे तमाम शब्दहीनो को शब्द देने के लिए !
दाल-आटा, शाक-फल से भी कुपोषण हो रहा।
जवाब देंहटाएंकुछ नही मौलिक बचा है, पिष्ट-पेषण हो रहा।
क्या लिखें, किसको सुनाएँ, कौन छापेगा भला?
देवियों का मन्दिरों में, रोज शोषण हो रहा....
वाह बहुत ही सुंदर और गहरी बात कह दिया आपने! लाजवाब पंक्तियाँ ! बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना!
देवियों का मन्दिरों में, रोज शोषण हो रहा।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर शास्त्री जी, यही हकीकत है, बाहर लोग पूजने का ढोंग रचते है और और अन्दर ये कलयुगी अपनी औकात दिखा देते है !
सामाजिक सरोकारों से ओत-प्रोत कविता...बेहतरीन
जवाब देंहटाएंwah bhaut hi kamal ke Mutak hai ....gagar main sagar.
जवाब देंहटाएंsir please do check out
जवाब देंहटाएंwww.simplypoet.com
World's first multilingual poetry portal
do post there you may be depriving a lot of people the opportunity to appreciate your beautiful creations.
कट गई है गीत-गज़लों मे मेरी यह जिन्दगी,
जवाब देंहटाएंकिन्तु अब तक छन्द और लय में कमी है।।
वाह वाह मयंक जी लाजवाब शुभकामनायें
देवियों का मन्दिरों में, रोज शोषण हो रहा।।
जवाब देंहटाएंबहुत सच्चाई है इस पंक्ति में!
दोनों मुक्तक सहेजने के काबिल हैं.
महावीर शर्मा
शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंआपने बहिन जी संबोधित करते हुए लिखा , ह्रदय की सदभावना हम तक पहुँची |
आपने लिखा
कट गई है गीत-गज़लों मे मेरी यह जिन्दगी,
किन्तु अब तक छन्द और लय में कमी है।।
तो भाई जी ऐसी निराशा ठीक नहीं , आप तो बात बात में कैसे कैसे मुक्तक गढ़ते हैं ! रही बात जिन्दगी की छंद और लय की ,तो रास्ते कब आसान और समतल हुए हैं , बस जैसे हैं वैसे ही स्वीकार करना और उनसे सुंदर वीणा के स्वर निकाल लेने में ही कलाकारी है |बस बाकी दियाँ गल्लाँ छड्डो जी |
शुभकामनाएं
शारदा अरोरा
bahut hi gahan likha hai.........adbhut soch ke sath gahri vedna prakat ho rahi hai.
जवाब देंहटाएंbahut badiya..really nice poem !!
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