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सोमवार, 9 नवंबर 2009
"पुरानों को नमन और नयों को प्रणाम!!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
सभी में निहित है प्रीत।
आज
लिखे जा रहे हैं अगीत,
अतुकान्त
सुगीत, कुगीत
और नवगीत।
जी हाँ!
हम आ गये हैं
नयी सभ्यता में,
जीवन कट रहा है
व्यस्तता में।
सूर, कबीर, तुलसी की
नही थी कोई पूँछ,
मगर
आज अधिकांश ने
लगा ली है
छोटी या बड़ी
पूँछ या मूँछ।
क्योंकि इसी से है
उनकी पूछ
या पहचान,
लेकिन
पुरातन साहित्यकारों को तो
बना दिया था
उनके साहित्य ने ही महान।
परिपूर्ण थी
उनकी लेखनी
मर्यादाओं से,
मगर
आज तो लोगों को
सरोकार है
विविधताओं से।
लो हो गया काम,
पुरानों को नमन
और नयों को प्रणाम!!
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हम लौट आये हैं
जवाब देंहटाएंअपनी पुरानी सभ्यता में,
जीवन कट रहा है
व्यस्तता में।
वाह शास्त्री जी मैं तो आपकी रचना को पढ़कर निशब्द हो गई ! हर एक पंक्तियाँ आपने इतने सुंदर तरीके से लिखा है जो सच्चाई का प्रतीक है!
आज अधिकांश ने
लगा ली है
छोटी या बड़ी
पूँछ या मूँछ।
बिल्कुल सही कहा है आपने!
लो हो गया काम,
पुरानों को नमन
और नयों को प्रणाम!!
बेहतरीन और शानदार रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
अच्छा लगा बाँच कर............
जवाब देंहटाएंबधाई !
बहुत बढिया विचार है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
भाव अच्छे लगे
जवाब देंहटाएंशास्त्री को सलाम
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
मगर
जवाब देंहटाएंआज तो लोगों को
सरोकार है
विविधताओं से।
लो हो गया काम,
पुरानों को नमन
और नयों को प्रणाम!!
मेरा भी नमन !
बहुत खूब, बढ़िया लगी आपकी ये रचना ।
जवाब देंहटाएंएक सुन्दर सामयिक रचना.
जवाब देंहटाएंआपको भी हार्दिक नमन।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत खूब............ क्या कहने !!आपको भी हार्दिक नमन।
जवाब देंहटाएंआज अधिकांश ने
जवाब देंहटाएंलगा ली है
छोटी या बड़ी
पूँछ या मूँछ
सुंदर
भाव बढ़िया है
सादर नमन !
पुरानों को नमन
जवाब देंहटाएंऔर नयों को प्रणाम!!
पुराने हो या नये भाई मेरा तो हर किसी को प्रणाम
Bahut badiya....
जवाब देंहटाएंmera bhi naman swikaren
विचार के क्षण ही नहीं मनोरंजन और फुलझड़ियों का ज़यका भी मिला।
जवाब देंहटाएंपुरानों को नमन
जवाब देंहटाएंऔर नयों को प्रणाम!!
बिलकुल सही लिखा आप ने धन्यवाद
बढ़िया!!
जवाब देंहटाएंनया हूँ अतः प्रणाम!!
पुरानों के आशिर्वाद से नए भी अच्छा लिख रहे हैं शास्त्री जी....
जवाब देंहटाएंसभी सूर तुलसी कबीर नहीं हो सकते
bilkul sahi kaha.
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