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सोमवार, 30 नवंबर 2009
"वीराना जैसा अपना चमन हो नही सकता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत सुंदर पंक्तियाँ .... बहुत अच्छी लगी कविता....
जवाब देंहटाएं--
www.lekhnee.blogspot.com
Regards...
Mahfooz..
गुंचों की हिफाजत को हैं कुछ खार जरूरी,
जवाब देंहटाएंफौजों के साथ होते हैं हथियार जरूरी,
बिलकुल सत्य है
सुन्दर भाव
बहुत सुंदर कविता लिखी शास्त्री जी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआस्था और आशावादिता से भरपूर स्वर इस कविता में मुखरित हुए हैं।
जवाब देंहटाएंगुंचों की हिफाजत को हैं कुछ खार जरूरी,
जवाब देंहटाएंफौजों के साथ होते हैं हथियार जरूरी,
साकार शत्रुओं का सपन हो नही सकता।
इतना उदास फूलों का मन हो नही सकता।।
sunder bhav..sachchi baat..bahut sunder kavita
सुन्दर रचना है.
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव के साथ बेहद ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने ! बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना है .....
जवाब देंहटाएंwaah waah shastri ji .........bahut hi sundar aur aashavadi kavita.......lajawaab.
जवाब देंहटाएंवीराना जैसा अपना चमन हो नही सकता।
जवाब देंहटाएंइतना उदास फूलों का मन हो नही सकता।।
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ
क्या खूब लिखा है आपने ...........अच्छा लगा पढ़ कर!
जवाब देंहटाएंदेशप्रेम की भावना से ओत -प्रोत कविता .....सुंदर ....बधाई ॥!
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