"चुरा लीजिए नटवरलाल! लाया हूँ मैं ताजा माल!!"
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बुधवार, 13 जनवरी 2010
“गजल के उदगार ढो रहे हैं।” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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तूफान आँधियों में, हमने दिये जलाये,
जवाब देंहटाएंफानूस बन गये हम, जब दीप झिलमिलाये,
हम प्रीत के सुजल से, अंगार धो रहे हैं।
हम गीत और गजल के उदगार ढो रहे हैं।।
बहुत सुंदर कविता शास्त्री जी
बहुत लाजवाब शाश्त्रीजी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
वीरान वाटिका में, रूठे सुमन खिलाये,
जवाब देंहटाएंमाला के तार में हम, अब प्यार पो रहे हैं।
nice
ऊसर जमीन में हम, उपहार बो रहे हैं।
जवाब देंहटाएंहम गीत और गजल के उदगार ढो रहे हैं।।
बहुत खूब शास्त्रीजी...
गज़ल का हर शेर बहुत अच्छा है।
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंमनके सभी पिरोये, टूठे सुजन मिलाये.
जवाब देंहटाएंवीरान वाटिका में, रूठे सुमन खिलाये,
माला के तार में हम, अब प्यार पो रहे हैं।
हम गीत और गजल के उदगार ढो रहे हैं।।
वाह,
शास्त्री जी आपको कविता के नीचे एक चेतावनी मदन लाल जी के नाम भी लिख देनी थी कि भाई अब मत चोरना इसे :)
शानदार रचना ,अपने उदगारों को ऐसे ही प्रस्तुत करते रहिये
जवाब देंहटाएंगोदियाल जी!
जवाब देंहटाएंमदन लाल को
आमन्त्रण दे दिया है!
shastriji
जवाब देंहटाएंbahut hi shandar rachna hai aur choron ke moonh par bhi achcha nishana lagaya hai.
बहुत बढिया लिखा है .. बहुत बहुत बधाई आपको !!
जवाब देंहटाएंएक तरफ ख़ुशी की बात यहाँ यह है की आपकी रचना इतनी उम्दा लगी पारीक जी को की बिना किसी लोक लाज के आपकी रचना को अपनी बना ली !!! ये है सच्ची रचना मोहब्बत अब आप चोर कहें चाहे डाकू कहे हा..हा..हा..
जवाब देंहटाएंये मदनलाल कौन है इनसे बचकर रहना होगा ?
जवाब देंहटाएं@Sharad Kokaas
जवाब देंहटाएंये मदनलाल कौन है इनसे बचकर रहना होगा ?
शरद जी, नटवरलाल का सौतेला भाई :)
मयंक जी आपकी रचना अद्भुत है।
जवाब देंहटाएंतूफान आँधियों में, हमने दिये जलाये,
फानूस बन गये हम, जब दीप झिलमिलाये,
हम प्रीत के सुजल से, अंगार धो रहे हैं।
हम गीत और गजल के उदगार ढो रहे हैं।।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है। आपने उस रचना चोर को पकड कर बहुत बडा काम किया है मैने कल उसकी बहुत सी पोस्ट देखी । उसे तो पोस्ट करना भी नहीं आता उसने ऐसे ही उठा उठा कर चेप दी हैं एक पहरे मे तीन तीन गज़लें । अच्छा चोर पकडा बधाई आपको
आज तो आपने पहले ही न्यौता दे दिया. मदन जी को ;)
जवाब देंहटाएंक्या बात है। बहुत ही बढ़िया कहा- उद्गार ढो रहे हैं।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी, आपको मकर संक्रांति पर्व पर शुभकामनाएँ और प्रणाम।
जवाब देंहटाएंBAHUT LAJAWAAB SHASHTRI JI .... BEHATREEN RACHNA AUR SAATH SAATH MADAN LAAL KO SAHI CHETAAWNI ...
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