सूरज और कुहरा कुहरे और सूरज में,जमकर हुई लड़ाई। जीत गया कुहरा, सूरज ने मुँहकी खाई।। ज्यों ही सूरज अपनी कुछ किरणें चमकाता, लेकिन कुहरा इन किरणों को ढकता जाता, बासन्ती मौसम में सर्दी ने ली अँगड़ाई। जीत गया कुहरा, सूरज ने मुँहकी खाई।। साँप-नेवले के जैसा ही युद्ध हो रहा, कभी सूर्य और कभी कुहासा क्रुद्ध हो रहा, निर्धन की ठिठुरन से होती हाड़-कँपाई। जीत गया कुहरा, सूरज ने मुँहकी खाई।। कुछ तो चले गये दुनिया से, कुछ हैं जाने वाले, ऊनी वस्त्र कहाँ से लायें, जिनको खाने के लाले, सुरसा के मुँह सी बढ़ती ही जाती है मँहगाई। जीत गया कुहरा, सूरज ने मुँहकी खाई।। |
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रविवार, 24 जनवरी 2010
“… …सूरज ने मुँहकी खाई!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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कुछ तो चले गये दुनिया से, कुछ हैं जाने वाले,
जवाब देंहटाएंऊनी वस्त्र कहाँ से लायें, जिनको खाने के लाले,
बहुत अच्छी रचना, लेकिन सुना है आज तो सुर्य देवता जीत गये
aaj yahaan to khili dhoop hai shastri ji....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
कुहरा तो है कुछ ही दिन का,
जवाब देंहटाएंअब सूरज ही आएगा!
रोज़ उजाला देकर हमको,
ख़ुश होकर मुस्काएगा!
--
क्यों हम सब पूजा करते हैं, सरस्वती माता की?
लगी झूमने खेतों में, कोहरे में भोर हुई!
--
संपादक : सरस पायस
कुछ तो चले गये दुनिया से, कुछ हैं जाने वाले,
जवाब देंहटाएंऊनी वस्त्र कहाँ से लायें, जिनको खाने के लाले,
सुरसा के मुँह सी बढ़ती ही जाती है मँहगाई।
जीत गया कुहरा, सूरज ने मुँहकी खाई।।
bahut sunder samyik, aur pyara geet, badhaai.
आपकी कविता पढ़ने पर ऐसा लगा कि आप बहुत सूक्ष्मता से एक अलग धरातल पर चीज़ों को देखते हैं।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! इस उम्दा रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
जवाब देंहटाएंachhee aur samsamyik rachna,dhnyavaad.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना.....
जवाब देंहटाएंआप इतना अच्छा लिखते कैसे हैं. अन्त की लाईनों ने बड़ा ही हृदयविदारक चित्र खींच दिया. महफूज जी आज कुछ व्यथित हैं, उनके लिये भी एक अच्छी सी रचना भेजिये.
जवाब देंहटाएं" कुछ तो चले गये दुनिया से, कुछ हैं जाने वाले,
जवाब देंहटाएंऊनी वस्त्र कहाँ से लायें, जिनको खाने के लाले,
सुरसा के मुँह सी बढ़ती ही जाती है मँहगाई।
जीत गया कुहरा, सूरज ने मुँहकी खाई।।
" bahut hi badhiya rachana ."
----- eksacchai { AAWAZ }
अच्छी पोस्ट!
जवाब देंहटाएं@भारतीय नागरिक जी!
जवाब देंहटाएंमहफूज के लिए अनमोल तोहफा तो आज "चर्चा मंच" http://charchamanch.blogspot.com/2010/01/blog-post_25.html पर सजा दिया है!
बहुत सुन्दर रचना बधाई
जवाब देंहटाएंज्यों ही सूरज अपनी कुछ किरणें चमकाता,
जवाब देंहटाएंलेकिन कुहरा इन किरणों को ढकता जाता,
बासन्ती मौसम में सर्दी ने ली अँगड़ाई।
जीत गया कुहरा, सूरज ने मुँहकी खाई।।
बहुत सुन्दर , सभी कुछ विपरीत दिशा में च;ल रहा है शास्त्री जी ,
bahut sundar rachna .
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भावों के साथ अनुपम प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसाँप-नेवले के जैसा ही युद्ध हो रहा,
जवाब देंहटाएंकभी सूर्य और कभी कुहासा क्रुद्ध हो रहा,....
मौसम की भी शब्दों में बाँध लिया आपने शास्त्री जी ......... कमाल की रचना है .......