छा रहा मधुमास में, कुहरा घना है। दिन दुपहरी में दिवाकर अनमना है। रश्मियों के शाल की आराधना है। छा रहा मधुमास में कुहरा घना है।। सेंकता है आग फागुन में बुढ़ापा, चन्द्रमा ने ओढ़ ली मोटी रजाई, खिल नही पाया चमन ऋतुराज में, टेसुओं ने भी नही रंगत सजाई, कोप सर्दी का हवाओं में बना है। छा रहा मधुमास में कुहरा घना है।। |
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शनिवार, 23 जनवरी 2010
“नवगीत” (ड़ॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”
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जबाव नहीं आपका. हर विषय पर अच्छी कविता रचते हैं. वाह.
जवाब देंहटाएंअद्भुत! बिम्बों का सुंदर प्रयोग!!
जवाब देंहटाएंसेंकता है आग फागुन में बुढ़ापा,
चन्द्रमा ने ओढ़ ली मोटी रजाई,
खिल नही पाया चमन ऋतुराज में,
टेसुओं ने भी नही रंगत सजाई,
सेंकता है आग फागुन में बुढ़ापा,
जवाब देंहटाएंचन्द्रमा ने ओढ़ ली मोटी रजाई,
बहुत सुंदर अनुभूति हैं ये. आभार.
मयंक जी शर्दी की मार तो हम भी झेल रहे है मगर आप ने मौसम् का जीता सजीव चित्रण किया है बहुत बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
प्रवीण पथिक
9971969084
बहुत लाजवाब अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंरामराम.
नीड़ में अब भी परिन्दे सो रहे,
जवाब देंहटाएंफाग का शृंगार कितना है अधूरा,
शीत से हलकान बालक हो रहे,
चमचमाती रौशनी का रूप भूरा
सेंकता है आग फागुन में बुढ़ापा,
चन्द्रमा ने ओढ़ ली मोटी रजाई,
खिल नही पाया चमन ऋतुराज में,
टेसुओं ने भी नही रंगत सजाई,
बहुत सुंदर पंक्तियाँ....
" bahut hi khubsurat rachana sir .."
जवाब देंहटाएं---- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
छा रहा मधुमास में कुहरा घना है ... ... .
जवाब देंहटाएंनीड़ में अब भी परिन्दे सो रहे ... ... .
रश्मियों के शाल की आराधना है ... ... .
चन्द्रमा ने ओढ़ ली मोटी रजाई ... ... .
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इस सुंदर रचना में
मौसम के बहुत सुंदर चित्र खींचे गए हैं!
अत्यंत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है! बहुत अच्छा लगा!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना, शास्त्री जी दो चार कविताये चोर उच्च्को पर भी लिख दे, जो पहले चोरी करते है ओर फ़िर बेशर्मो की तरह सीना जोरी करते है
जवाब देंहटाएंwaah waah ..........bahut hi sundar aur laybaddh geet.
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