कभी कुहरा, कभी सूरज, कभी आकाश में बादल घने हैं। दुःख और सुख भोगने को, जीव के तन-मन बने हैं।। आसमां पर चल रहे हैं, पाँव के नीचे धरा है, कल्पना में पल रहे हैं, सामने भोजन धरा है, पा लिया सब कुछ मगर, फिर भी बने हम अनमने हैं। दुःख और सुख भोगने को, जीव के तन-मन बने हैं।। आयेंगे तो जायेंगे भी, जो कमाया खायेंगें भी, हाट मे सब कुछ सजा है, लायेंगे तो पायेंगे भी, धार निर्मल सामने है, किन्तु हम मल में सने हैं। दुःख और सुख भोगने को, जीव के तन-मन बने हैं।। देख कर करतूत अपनी, चाँद-सूरज हँस रहे हैं, आदमी को बस्तियों में, लोभ-लालच डस रहे हैं, काल की गोदी में, बैठे ही हुए सारे चने हैं। दुःख और सुख भोगने को, जीव के तन-मन बने हैं।। |
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शुक्रवार, 29 जनवरी 2010
“बादल घने हैं” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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धार निर्मल सामने है, किन्तु हम मल में सने हैं।
जवाब देंहटाएंदुःख और सुख भोगने को, जीव के तन-मन बने हैं।।
सात्विक भावना से सराबोर है आपकी कविता | बहुत अच्छी लगी |
पिल्लू राजा के जाने का अफ़सोस है | पिछले वर्ष मेरे भी १३ वर्ष के साथी 'सम्राट' ने मुझे छोड़ कर स्वर्ग का मार्ग अपना लिया था | आपका दर्द मुझे अपना सा लगा | ईश्वर उसकी आत्मा को सदगाति दें यही कामना है |
http://sudhinama.blogspot.com
धार निर्मल सामने है, किन्तु हम मल में सने हैं।
जवाब देंहटाएंदुःख और सुख भोगने को, जीव के तन-मन बने हैं।।
बहुत सुन्दर कविता।
भगवान पिल्लू की आत्मा को शाँति दे।पालतू जानवर इन्सान से भी अधिक प्यार लेते हैं।
पिल्लू राजा का नाम क्या था?
जवाब देंहटाएंभगवान उसकी आत्मा को शांति दे.
पीड़ा देती बहुत जुदाई,
जवाब देंहटाएंपिल्लू-राजा तुम्हें विदाई,
" बेहद दुखद....."
regards
आसमां पर चल रहे हैं, पाँव के नीचे धरा है,
जवाब देंहटाएंकल्पना में पल रहे हैं, सामने भोजन धरा है,
पा लिया सब कुछ मगर, फिर भी बने हम अनमने हैं।
दुःख और सुख भोगने को, जीव के तन-मन बने हैं।।
सच्चाई और आतंरिक पीड़ा !
पीड़ा देती बहुत जुदाई,
जवाब देंहटाएंपिल्लू-राजा तुम्हें विदाई,
ऐसे समय मन काफी व्यथित हो जाता है ।
बहुत ही सुंदर भाव पुर्ण प्रस्तुति-आभार
जवाब देंहटाएंआप की रचना बहुत अच्छी लगी...
जवाब देंहटाएंपीड़ा देती बहुत जुदाई,
पिल्लू-राजा तुम्हें विदाई,
सदा-सदा के लिए आज तुम सुप्त हो गये!
संसारी झंझट से बिल्कुल मुक्त हो गये!!
पिल्लू राजा की आत्मा को शांति दे.दुख तो हुया पढ कर, जब घर मै कोई भी जानवर पाले तो वो एक तरह से घर का मेम्बर बन जाता है, ओर फ़िर उस के जाने का दुख होता है
मार्मिक रचना. सच है अपने परिजन के बिछडने जैसा दुख ही व्यापता है, पालतू जानवरों के जाने पर.
जवाब देंहटाएंgood!
जवाब देंहटाएंआपके पिल्लू के जाने पर दुख है. मैंने इसीलिये कोई पालतू नहीं रखा. अच्छी चीजों और लोगों से बिछड़ना हमेशा ही कष्टदायक होता है.
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक.
जवाब देंहटाएंरामराम.
कभी कुहरा, कभी सूरज, कभी आकाश में बादल घने हैं।
जवाब देंहटाएंदुःख और सुख भोगने को, जीव के तन-मन बने हैं।।
behad khoobsoorati se sach ko bayan karte hain aur sath hi ek sikh bhi dete hain.......shukriya.
दुःख और सुख भोगने को, जीव के तन-मन बने हैं,
जवाब देंहटाएंआयेंगे तो जायेंगे भी, जो कमाया खायेंगें भी,
हाट मे सब कुछ सजा है, लायेंगे तो पायेंगे भी,
जीवन की सच्चाई को आपने बखूबी प्रस्तुत किया है! मार्मिक रचना! पिल्लू बहुत ही प्यारा था और उसके जाने का दुःख मुझे भी हो रहा है!
शास्त्री जी, बाल कविता और 'बादल घने हैं' दोनों ही बहुत सुन्दर बन पड़ी हैं...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
सब देह धरन का दंड़ है।
जवाब देंहटाएंपिल्लू सही और ग़लत व्यक्तियों को
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे ढंग से पहचानता था!
--
वह मयंक जी के परिवार का पालतू कम
और परिवार का सदस्य अधिक था!
--
जब भी उनके यहाँ जाता हूँ,
तो उसकी याद अपने आप ही जाती है!
--
मयंक जी के यहाँ पहुँचने पर स्वागत करनेवाला
पहला "व्यक्ति" वही हुआ करता था!
bahut hi maarmik kavita,
जवाब देंहटाएंbhavpoorn bani hai...hamesha ki tarah..
bahut acchi lagi..
abhaar..