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शुक्रवार, 22 जनवरी 2010
"सच्चे दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं आप. पर इस तरह निराश तो नही होना चाहिये. हम अपना प्रयत्न जारी रखेंगे. बकरे की मां कब तक खैर मनायेगी?
जवाब देंहटाएंरामराम.
" behad saty kaha hai aapne
जवाब देंहटाएंरफा-दफा जब कर दिया, चोरी का सामान।
वापिस फिर से चाहता, बेईमान सम्मान।।
धमका रहा समुद्र को, खारा बिन्दु एक।
ज्वार जगाता सिऩ्धु में,किंकुड़िया को फेंक।।
TAU ne bilkul ssahi kaha hai
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
बिलकुल सही कहा आपने .... एक मच्छली सारे तालाब को गन्दा कर देती है .... एक तो चोरी ऊपर से सीना ज़ोरी....
जवाब देंहटाएंसही कहा एकदम ..चोरी से कबतक एठेगा
जवाब देंहटाएंधमका रहा समुद्र को, खारा बिन्दु एक।
ज्वार जगाता सिऩ्धु में,किंकुड़िया को फेंक।
सत्य वचन.
जवाब देंहटाएंमन करता है -
जवाब देंहटाएं"ऐसी मछलियों का जूस निकालकर
पड़ोसी के कुत्ते को खिला दूँ!"
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क्यों हम सब पूजा करते हैं, सरस्वती माता की?
लगी झूमने खेतों में, कोहरे में भोर हुई!
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संपादक : सरस पायस
द्विवेदी जी को पत्र लिखें और इस ओर ध्यान आकर्षित करवाईये.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा सारे दोहे! बधाई!
जवाब देंहटाएंअपनी पे आप आ भी गये तो आप क्या कर लोगे गोदियाल जी ?..आप के पास माल था इसलिए चोर ने चुरा लिया अब आप क्या चोर के घर से क्या चुरायेंगे ?
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा
सबसे अच्छा ये है कि वह व्यक्ति सार्वजनिक रूप से मुआफी मांगे मयंक जी से...............
चौर्य कर्म भी एक कला है :). बाकी सबक तो मिलना ही चाहिये. छोड़ देने से हौसला बढ़ता है.
जवाब देंहटाएंमयंक जी किसी एक दो दोहे को कहना नहीं चाहती क्यों कि मुझे सभी दोहे लाजवाब लगे हैं एक से बढ कर एक बधाई
जवाब देंहटाएंरफा-दफा जब कर दिया, चोरी का सामान।
जवाब देंहटाएंवापिस फिर से चाहता, बेईमान सम्मान।।
आप ने बहुत सही कहा है कि अब साधू के रुप मै आना चाहता है शैतान
हम सब आप के संग है
जितनी तारीफ़ करें कम है एक से बढ़कर एक दोहे...लाज़वाब रचना..बधाई शास्त्री जी!!
जवाब देंहटाएंकिसी एक की तारीफ में कुछ कहना दूसरे के साथ अन्याय होगा, अनुपम प्रस्तुति के लिये आभार ।
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