वस्ल की शाम महकी महकी सी है वादियों की सवा शौक से आके इस का मज़ा लीजिऐ बन गयी मैं गज़ल आप के सामने जैसे चाहो मुझे आजमा लीजिऐ मय को पी कर अगर दिल मचलने लगे अपना दिल हमें फिर बना लीजिऐ ये बहारों का रंग हुस्न की तश्नगी प्यास नजरों की अपनी बुझा लीजिऐ मैं बयाबां में हूँ खुशनुमा एक कली मुझको जैसे जहाँ हो सजा लीजिऐ कल तलक आरजूयें जो ‘बदनाम’ थीं वस्ल को शाम है दिल लुटा लीजिऐ वादियों-जंगल, कानन, वस्ल-मिलन, मुलाकात, सवा-हवा, मय, शराब तश्नगी-प्यास, बयाबां-जंगल, आरजूयें-इच्छायें गुरूसहाय भटनागर “बदनाम” |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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शनिवार, 6 मार्च 2010
“रूमानी शायर "बदनाम" की एक ग़ज़ल” (प्रस्तुतिःडॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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बहुत ही रूमानी अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंbahut sundar gazal..........aabhar.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल.....
जवाब देंहटाएंvery nice!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया !!
जवाब देंहटाएंगुरुसहाय भटनागर जी को इस रचना के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंwaah..bahut khoob!
जवाब देंहटाएंtyping errors हटा दें तो और अच्छी लगेगी ये....
जवाब देंहटाएंग़ज़ल का आनंद बिलकुल निराला है पढने में इसका आनंद मुक्तक से कई गुना जादा है ,
जवाब देंहटाएंग़ज़ल का आनंद बिलकुल निराला है पढने में इसका आनंद मुक्तक से कई गुना जादा है ,
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