रूप धरती ने धरा कितना सलोना। बिछ गया खेतों में कंचन का बिछौना।। भार से बल खा रहीं हैं डालियाँ, शान से इठला रहीं हैं बालियाँ, छा गया चारों तरफ सोना ही सोना। बिछ गया खेतों में कंचन का बिछौना।। रश्मियों ने रूप कुन्दन का सँवारा, नयन को सबके लुभाता यह नज़ारा, धान्य से सज्जित हुआ हरेक कोना। बिछ गया खेतों में कंचन का बिछौना।। मस्त होकर गा रहा लोरी पवन है, नाचता होकर मुदित जन-गण मगन है, मिल गया उपहार में स्वर्णिम खिलौना। बिछ गया खेतों में कंचन का बिछौना।। |
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मंगलवार, 23 मार्च 2010
“कंचन का बिछौना” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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आह ... "कंचन का बिछोना" ..कितना सुन्दर शब्द संयोजन है
जवाब देंहटाएंभार से बल खा रहीं हैं डालियाँ,
जवाब देंहटाएंशान से इठला रहीं हैं बालियाँ,
सजा चारों तरफ सोना ही सोना।
बिछा गया खेतों में कंचन का बिछौना।।
वाह वाह्……अत्यन्त सुन्दर…………………बहुत ही मनमोहक्।
रश्मियों ने रूप कुन्दन का सँवारा,
जवाब देंहटाएंरोशनी में चन्द्र की निखरा नज़ारा,
धान्य से सज्जित हुआ हरेक कोना।
बिछा गया खेतों में कंचन का बिछौना।।
श्रधेय,
बहुत ही सुन्दर रचना...
मन मुदित हुआ पढ़ कर...
रूप धरती ने धरा कितना सलोना।
जवाब देंहटाएंबिछा रहा खेतों में कंचन का बिछौना।।
बहुत मनभावन रचना. प्रकृति के बदलते स्वरूप पर पैनी नजर
बहुत सुन्दर
श्रीमान जी, आपने सुनहरे गेंहू की लम्बी लम्बी बालियों का बहुत अच्छा वर्णन किया है. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंभार से बल खा रहीं हैं डालियाँ,
जवाब देंहटाएंशान से इठला रहीं हैं बालियाँ,
सजा चारों तरफ सोना ही सोना।
बिछा गया खेतों में कंचन का बिछौना।।
बहुत सुन्दर शास्त्री जी !
बहुत सुन्दर रचना....कंचन के बिछौने के रूप में लहलहाती फसलों का बहुत सुन्दर वर्णन
जवाब देंहटाएंरश्मियों ने रूप कुन्दन का सँवारा,
जवाब देंहटाएंरोशनी में चन्द्र की निखरा नज़ारा,
धान्य से सज्जित हुआ हरेक कोना।
बिछा गया खेतों में कंचन का बिछौना।।
चन्द्र की निखरा
ज़रा इसे ठीक कर लें।
आपकी यह रचना विषय को कलात्मक ढंग से प्रस्तुत करती है ।
किसान ने सारी धरती पर सोना बिछा दिया... वाह बहुत सुंदर कविता लगी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंguru ji mahaaraaj...
जवाब देंहटाएंpadh ke mazaa aa gaya!!
aabhar!
बहुत ख़ूबसूरत और मनमोहक रचना लिखा है आपने!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया अभिव्यक्ति !आपकी कविता देख - पढ़ कर बाबा नागार्जुन की 'सोनिया समन्दर' कविता की स्मृति हो आई :
जवाब देंहटाएंसोनिया समन्दर
सामने
लहराता है
जहाँ तक नज़र जाती है,
सोनिया समन्दर !
बिछा है मैदान में
सोन ही सोना
सोना ही सोना
सोना ही सोना
गेहूँ की पकी फसलें तैयार हैं--
बुला रही हैं
खेतिहरों को
..."ले चलो हमें
खलिहान में--
घर की लक्ष्मी के
हवाले करो
ले चलो यहाँ से"
बुला रही हैं
गेहूँ की तैयार फसलें
अपने-अपने कॄषकों को...