कृतज्ञ जिसके मन में चलता रहता है यज्ञ दुनियादारी निभाने में होता है सुविज्ञ जो धन से भले ही हो कंगाल लेकिन उसका हृदय होता है बहुत विशाल कृतघ्न गोबर से भी गया गुजरा लगता है कोठे का मुजरा ऊपर से कोमल भीतर से कठोर खोजता प्रतिदिन नये-नये ठौर उजला तन काला मन वही तो होता है कृतघ्न! |
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रविवार, 21 मार्च 2010
“दो हल्की-फुल्की परिभाषाएँ” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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परिभाषाएँ हल्की-फुल्की नहीं है.
जवाब देंहटाएंसटीक हैं
जो धन से
जवाब देंहटाएंभले ही हो
कंगाल
लेकिन
उसका हृदय
होता है
बहुत विशाल
bahut anoyhi baat kahi hai aapne. Badhai!!
गूढ! सटीक। यथार्थ।
जवाब देंहटाएंबहुत गहन परिभाषाएं हैं....अच्छी सीख के लिए आभार
जवाब देंहटाएंनयी किन्तु सटीक परिभाषायें.
जवाब देंहटाएंअजी यह हल्की कहा, बहुत गहरी ओर भाव पुर्ण बाते कह रही है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत अच्छी परिभाषायें !
जवाब देंहटाएंछोटि किन्तु मारक !
सटीक!
जवाब देंहटाएंहिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
wow...
जवाब देंहटाएंbang on target Guru ji maharaaj!
सनझाने का यह तरीक़ा
जवाब देंहटाएंबहुत उत्तम है!
--
ज़ारी रखिए!
bahut hi goodh aur yatharth se ot-prot paribhashayein di hain.
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक परिभाषाएँ हैं.
जवाब देंहटाएंबधाई!
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हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.