रोज़-रोज़ मैं शब्दों का गठबन्धन करता जाता हूँ। जो दिनभर में देखा, उसको रचना में दुहराता हूँ।। नया साल या प्रेमदिवस हो या हो होली-दीवाली, रक्षाबन्धन जन्मदिवस या हो खेतों की हरियाली, ग्रीष्म-शीत और वर्षा पर तुकबन्दी कर हर्षाता हूँ। जो दिनभर में देखा, उसको रचना में दुहराता हूँ।। महादेव का वन्दन हो या हो माता का आराधन, कोमल बच्चे याद दिला जाते मुझको मेरा बचपन, बालगीत नित नये बनाकर उनको रोज सुनाता हूँ। जो दिनभर में देखा, उसको रचना में दुहराता हूँ।। दीन-दुखी. बूढ़े वरगद का होता है अपमान जहाँ, खूनसनी स्याही से लिखती, अक्षर मेरी कलम वहाँ, अबलाओं की व्यथा देख, खामोश नहीं रह पाता हूँ। जो दिनभर में देखा, उसको रचना में दुहराता हूँ।। जंगली जीवों और वनों का दोहन नही देखा जाता, सरिताओं में बढ़े प्रदूषण से मेरा मन अकुलाता, मानवता को चीख-चीखकर, मैं दिन-रात जगाता हूँ। जो दिनभर में देखा, उसको रचना में दुहराता हूँ।। |
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रविवार, 6 मार्च 2011
"....तुकबन्दी कर हर्षाता हूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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नया साल या प्रेमदिवस हो या हो होली-दीवाली,
जवाब देंहटाएंरक्षाबन्धन जन्मदिवस या हो खेतों की हरियाली,
ग्रीष्म-शीत और वर्षा पर तुकबन्दी कर हर्षाता हूँ।
जो दिनभर में देखा, उसको रचना में दुहराता हूँ।
bahut sunder
"एक सच्चे कवि की है ये पहचान,बोल चाल की बातों से भी गढ़ता है वो गान"......पर शास्त्री जी आपकी कविताएँ तो काव्य गंगा के वो पावण अमृत है,जिनका रसपान कर मुर्दों में भी जान आ जाये..........."तुकबंदी तो हम करते है....और हमेशा सीखते है आपसे....धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंbahut hee khoobsurat rachna guru ji!
जवाब देंहटाएंआप की कविता तो हमेशा सुंदर ओर लाजबाव होती हे, हमे तो यह तुकबन्दी भी करनी नही आती:), धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपके हर अवलोकनों में काव्यात्मकता है, बच्चों को यही भाता है, आप न जाने कितने कवि निर्माण कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबढिया है बहुत बढिया. तुकबन्दियां तो गीत की जान होती हैं.
जवाब देंहटाएंyeh to aapki medha hai...
जवाब देंहटाएंतुकबंदी कहाँ ..छंद में रचनाएँ करते हैं आप तो ..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंtukbadiyeain to kamal ki hai
जवाब देंहटाएंकमाल की तुकबंदी है जी| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंदीन-दुखी. बूढ़े वरगद का होता है अपमान जहाँ,खूनसनी स्याही से लिखती, अक्षर मेरी कलम वहाँ,अबलाओं की व्यथा देख, खामोश नहीं रह पाता हूँ।जो दिनभर में देखा, उसको रचना में दुहराता हूँ।।
जवाब देंहटाएं.
अति सुंदर
' जो दिनभर में देखा, उसको रचना में दुहराता हूँ।'
जवाब देंहटाएंवाह क्या सीधी सपाट बात।
बेहतरीन रचना।
बधाई हो आपको शास्त्री जी।
अब इसको तुकबंदी कहेंगे तो कविता क्याहोगी पंडित जी!!
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी, आपकी तुकबंदी ही दिल को हर्षाती हे विभिन्न रंगो में सजी होली के त्यौहार की तरह --बधाई |
जवाब देंहटाएंमानवता को चीख-चीखकर, मैं दिन-रात जगाता हूँ।
जवाब देंहटाएंजो दिनभर में देखा, उसको रचना में दुहराता हूँ।।
bahut achchi lagi.....
आपने रचना लेखन पर रचना लिखी है..... बहुत ही सुंदर .....कमाल का अवलोकन है आपका
जवाब देंहटाएंबेहतरीन तो रच रहे हैं...काहे अवलोकन में लग गये///शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंवाह... बहुत बढ़िया!!!
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ……………लाजवाब अभिव्यक्ति……………आपकी इस रचना के आगे तो शब्द निशब्द हो गये।
जवाब देंहटाएं