पीछे मुड़ कर कभी न देखें, अपना आज सँवारें। औरों के गुण-दोष न देखें, अपना काज सुधारें।। स्वर्ग यहीं और नर्क यहीं है, किसने देखी जन्नत, चारों ओर सजे हैं अपने, सुन्दर-सुखद नज़ारे।। मानव चोला पाकर हम, अपने को मनुज बनाएँ, चंचल मन में प्रीत-रीत के, पीताम्बर को धारें।। क्षमा-सरलता और धैर्य ही, सच्चे आभूषण हैं। सोच-समझकर-नाप-तोलकर, ही हम शब्द उचारें।। पर उपदेश कुशल बहुतेरे, छाये दुनिया भर में। जग को झोंक रहे लहरों में, खुद हैं खड़े किनारे।। ऐसे ढोंगी सन्त-महन्तो से, बच करके रहना। धार धर्म का धवल लबादा, ठगते हैं ये सारे।। |
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शनिवार, 26 मार्च 2011
"ठगते हैं ये सारे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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जवाब देंहटाएंjag ko jhonk rahe lahron me khud hain khade kinare....bahut khoob.ek ek shabd saarthak hai.achchi prastuti.
जवाब देंहटाएंक्षमा-सरलता और धैर्य ही, सच्चे आभूषण हैं।
जवाब देंहटाएंसोच-समझकर-नाप-तोलकर, ही हम शब्द उचारें।।
डॉ.शास्त्री जी,
सही कहा आपने।
गहन अनुभूतियों और जीवन दर्शन से परिपूर्ण इस रचना के लिए आपका आभार....
सादर....
बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है. बधाई
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन करें.
क्या यही है पत्रकारिता का स्टैंडर्ड
चीयर लीडर्स की जगह आएंगी चीयर क्वीन्स
बहुत ही सुन्दर कहा अपने बहुत सी अच्छे लगे आपके विचार
जवाब देंहटाएंफुर्सत मिले तो अप्प मेरे ब्लॉग पे भी पधारिये
जैसी चाह वैसी राह
जवाब देंहटाएंपर उपदेश कुशल बहुतेरे, छाये दुनिया भर में।
जवाब देंहटाएंजग को झोंक रहे लहरों में, खुद हैं खड़े किनारे।।
'शानदार रचना की शानदार पंकि्त :
ठग तो हर जगह हैं, इन्हें पहचान कर बचना ही उचित है..
जवाब देंहटाएंऐसे ढोंगी सन्त-महन्तो से, बच करके रहना।
जवाब देंहटाएंधार धर्म का धवल लबादा, ठगते हैं ये सारे||
आपके विचार मुझे बहुत पसंद है शास्त्री जी --
पर उपदेश कुशल बहुतेरे, छाये दुनिया भर में।
जवाब देंहटाएंजग को झोंक रहे लहरों में, खुद हैं खड़े किनारे।
बहुत सार्थक और बेहतरीन प्रस्तुति...
thag hamaare pyaare!
जवाब देंहटाएंस्वर्ग यहीं और नर्क यहीं है, किसने देखी जन्नत बहुत अच्छा...
जवाब देंहटाएं