गम-ए-पिन्हाँ डूब कर तेरे ख्यालों में आके बैठा हूँ कौन सा ग़म है जिसे मैं छुपा के बैठाहूँ बदलते दौर में कोई बफ़ा नहीं करता चाह की फिर में शम्मा जला के बैठा हूँ कुसूर तेरा ही नहीं किस्मत का ही होगा अपनी दाग दामन में खुद ही लगाके बैठा हूँ मैं तेरे ख्याल से खाली कभी नहीं रहता तुम्हारी याद को दिल में बसा के बैठा हूँ करके ‘बदनाम’ हमसे दूर चले जाओगें गमे-पिन्हाँ में मैं हरन्ती मिटा के बैठा हूँ |
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मंगलवार, 22 मार्च 2011
"ग़ज़ल:गुरू सहाय भटनागर बदनाम" (प्रस्तोता:डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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शास्त्री जी सारे शेर डायरी में नोट कर लिए है --सारे एक से बढकर एक है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शेर कहे हैं, पढवाने का आभार।
जवाब देंहटाएंमैं तेरे ख्याल से खाली कभी नहीं रहता
जवाब देंहटाएंतुम्हारी याद को दिल में बसा के बैठा हूँ
दिल की ये बातें अच्छी लगीं।
ग़ज़ल बहुत ही शानदार है।
लाजवाब रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम
ek ravaanagi hai gazal me ..badhiya
जवाब देंहटाएंअभी-अभी तो होली खेली है डाक्टर साहब। कहां ये गम का फसाना लेकर बैठ गए।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत गज़ल पढवाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी बदनाम साहब से परिचय करवाने के लिये आप का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंपरिचय का आभार...पढ़कर आनन्द आ गया.
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह शानदार रचना।
जवाब देंहटाएंहोली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
धर्म की क्रान्तिकारी व्या ख्याa।
समाज के विकास के लिए स्त्रियों में जागरूकता जरूरी।
gazal kafi achchi lagi.mai bhi apne blog per ek apni diary se bhooli bisri gazal publish kar rahi hoon jaroor padhiyega.good day.
जवाब देंहटाएं"बदलते दौर में कोई बफ़ा नहीं करता" - यूं ही कोई बेवफ़ा नहीं होता, कुछ तो मजबूरी रही होगी।
जवाब देंहटाएं