अमर वीरांगना झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई के 154वें बलिदान-दिवस पर उन्हें अपने श्रद्धासुमन समर्पित करते हुए श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान की यह अमर कविता सम्पूर्णरूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ! सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटि तानी थी,बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी, गुमी हुई आजादी की कीमत सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी, चमक उठी सन् सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। कानपुर के नाना की मुँहबोली बहन छबीली थी, लक्ष्मीबाई नाम पिता की वह संतान अकेली थी, नाना के संग पढ़ती थी वह नाना के संग खेली थी, बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी, वीर शिवाली की गाथाएँ उसको याद जबानी थीं। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता का अवतार, देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार, नकली युद्ध व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार, सैन्य घेरना दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार, महाराष्ट्र कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में, ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में, राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में, सुभट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आई झाँसी में, चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजयाली छाई, किन्तु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई, तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाईं, रानी विधवा हुई हाय! विधि को भी नहीं दया आई, निःसंतान मरे राजा जी रानी शोक-समानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। बुझा दीप झाँसी का तब डलहौजी मन में हरषाया, राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया, फौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया, लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया, अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। अनुनय-विनय नहीं सुनता है, विकट फिरंगी की माया, व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया, डलहौजी ने पैर पसारे अब तो पलट गई काया, राजाओं-नब्वाबों के उसने पैरों को ठुकराया, रानी दासी बनी यह दासी अब महारानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। छिनी राजधानी देहली की, लिया लखनऊ बातों-बात, कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात, उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात, जबकि सिंध, पंजाब, ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्रनिपात, बंगाले, मद्रास आदि की भी तो यही कहानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। रानी रोई रनिवासों में, बेगम गम से थी बेजार, उनके गहने-कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाजार, सरेआम नीलाम छापते थे अंग्रेजों के अखबार, नागपूर के जेवर ले लो, लखनऊ के लो नौलख हार, यों परदे की इज्जत पर देशी के हाथ बिकानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। कुटिया में थी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान, वीर सैनिकों के मन में था, अपने पुरखों का अभिमान, नाना धुंधुंपंत-पेशवा जुटा रहा था सब सामान, बहिन छबीली ने रणचंडी का कर दिया प्रकट आह्वान, हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी, यह स्वतंत्रता की चिंगारी अंतरमन से आई थी, झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनउ लपटें छाई थीं, मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी, जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। नाना, धुंधुंपंत, ताँतिया, चतुर अजीमुल्ला सरनाम, अहमदशाह, मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम, भारत के इतिहास-गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम, लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी वो कुर्बानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। इनकी गाथा छोड़ चले हम झाँसी के मैदानों में, जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में, लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में, रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद्व असमानों में, जख्मी होकर वाकर भागा उसे अजब हैरानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार, घोड़ा थककर गिरा भूमि पर, गया स्वर्ग तत्काल सिधार, यमुना-तट पर अंग्रेजों ने फिर खाई रानी से हार, विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार, अंग्रेजों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। विजय मिली, पर अंग्रेजों की फिर सेना घिर आई थी, अब के जनरल स्मिथ सन्मुख था, उसने मुँह की खाई थी, काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आईं थीं, युद्ध-क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी, पर, पीछे ह्यूरोज आ गया हाय! घिरी अब रानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। तो भी रानी मार-काटकर चलती बनी सैन्य के पार, किन्तु सामने नाला आया, था यह संकट विषम अपार, घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार, रानी एक शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार पर वार, घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर-गति पानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। रानी गई सिधार, चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी, मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी, अभी उम्र थी कुल तेईस की, मनुज नहीं अवतारी थी, हमको जीवित करने आई बन स्वतंत्रता नारी थी, दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। जाओ रानी याद रखेंगे हम कृतज्ञ भारतवासी, यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनाशी, होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी, हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी, तेरा स्मारक तू होगी तू खुद अमिट निशानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। |
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सोमवार, 18 जून 2012
"महारानी लक्ष्मीबाई के 154वें बलिदान-दिवस पर"
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मैंने ये रचना प्राइमरी क्लास में पढ़ी थी,शायद अधूरी थी,पूरी रचना पढवाने के लिये आभार,,,,,
जवाब देंहटाएंये रचना मुझे आज भी याद है...सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ... आभार
जवाब देंहटाएंसादर नमन |
जवाब देंहटाएंएक बार फिर पढवाने के लिये आभार्।
जवाब देंहटाएंबचपन मे खूब पढ़ी और अंताक्षरी मे प्रयोग की यह वीर रस की कविता काफी पसंद रही है। कवियत्री उत्तर-प्रदेश विधान परिषद की सदस्य रही हैं और उनका भी सड़क दुर्घटना मे दुखांत हुआ था। रानी लक्ष्मी बाई को यह श्रद्धांजली अनुपम रही।
जवाब देंहटाएंसच कहा हैं आपने ....
जवाब देंहटाएंबुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
झाँसी की रानी अब तक कोई और ना हुई और ना ही कभी होगी ...
महाराष्ट्र कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी।
जवाब देंहटाएंबुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
महाराष्ट्र कुल-देवी , भी उसकी आराध्य भवानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
शास्त्री जी वह दौर याद दिला दिया जब हम डी ए वी इंटर कोलिज में इंटर मीडिएट साइंस में पढ़ते थे अन्ताक्षरी प्रतियोगिताओं में शिरकत करते थे यह रचना हम को कंठस्थ थी .
'महाराष्ट्र कुल-देवी , भी उसकी आराध्य भवानी थी।'
यह शुद्ध रूप है इस पंक्ति का जैसा हमें कंठस्थ है .आगे आप विदुर हो .हमें खपाए चलतें हैं आभार आपका .इस रचना के लिए खासकर जिसने वह दौर याद दिला दिया साहित्यिक कृतियों के गायन का .
shanadar yadagar prastuti...abhar
जवाब देंहटाएंमर्दानी को नमन..
जवाब देंहटाएंरानी लक्ष्मीबाई को नमन
जवाब देंहटाएंरानी लक्ष्मी बाई को एक बार फिर पढवाने के लिये आभार....
जवाब देंहटाएंpehli baar poori kavitaa padh ke bahut achha laga, bachpan mein sirf qitaabon mein hee suni thee but poori kavitaa aaj padhi.
जवाब देंहटाएंबाजुएं फडक उट्ठी आज ...
जवाब देंहटाएंनमन है वीरांगना कों ...