न्यूज चैनल सहारा समय उ.प्र. उत्तराखण्ड पर आज 10-06-2012 को मेरी इस कविता को सराहा गया है! जब गरमी की ऋतु आती है! लू तन-मन को झुलसाती है!! तब आता तरबूज सुहाना! ठण्डक देता इसको खाना!! यह बाजारों में बिकते हैं! फुटबॉलों जैसे दिखते हैं!! एक रोज मन में यह ठाना! देखें इनका ठौर-ठिकाना!! पहुँचे जब हम नदी किनारे! बेलों पर थे अजब नजारे!! कुछ छोटे कुछ बहुत बड़े थे! जहाँ-तहाँ तरबूज पड़े थे!! इनमें से था एक उठाया! बैठ खेत में इसको खाया!! इसका गूदा लाल-लाल था! ठण्डे रस का भरा माल था!! |
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रविवार, 10 जून 2012
ठण्डे रस का भरा माल था (सहारा समय उ.प्र. उत्तराखण्ड पर)
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भई वाह, पढ़कर तृप्ति हो गयी..
जवाब देंहटाएंबात ही सराहे जाने लायक है जी
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रसीली रचना
:-)
सादर.
एक सामान्य विषय को आपने कितनी खूबसूरती के साथ काव्य में ढाला है...वाकई यह सराहनीय है!...बधाई!
जवाब देंहटाएंरस से भरी रचना को पढ़कर आनंद आ गया !
जवाब देंहटाएंवाह ...बधाई शास्त्री जी ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई सर!
जवाब देंहटाएंसादर
क्या कहने
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बहुत -बहुत बधाई सर..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना....
:-)
ठण्डे रस का भरा माल था!! wah kya maza aya hoga.....
जवाब देंहटाएंसच मे सराहे जाने योग्य है…………रसभरी रचना
जवाब देंहटाएंबढिया गुणगान
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंक्या बात है!!
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि का लिंक कल दिनांक 11-06-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगा। सादर सूचनार्थ
बेहतरीन रसभरी सुंदर रचना,,,,, ,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,
sir ji muh me pani aa gaya...
जवाब देंहटाएंwah cool-cool...
बहुत बहुत बधाई सर!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत... वाह!
जवाब देंहटाएंसादर.
इसका गूदा लाल-लाल था!
जवाब देंहटाएंठण्डे रस का भरा माल था!!
बाल गीत ,फलों का मीत
शास्त्री जी हैं ,सबके मीत
इनकी भैया सबसे प्रीत .
कोई सके न इनसे जीत .
पहले तो बधाई...
जवाब देंहटाएंप्रभू आखिर वाला चित्र क्यों लगाया... अब तरबूज खाए बिना मन नहीं मान रहा... कल ही लाना पड़ेगा...
photo ke saath acha experiment kiya hai guru jee
जवाब देंहटाएं