वानरों की कैद में, जकड़ा हुआ है आदमी।। सभ्यता की आँधियाँ, जाने कहाँ ले जायेंगी, काम के उद्वेग ने, पकड़ा हुआ है आदमी। छिप गयी है अब हकीकत, कलयुगी परिवेश में, रोटियों के देश में, टुकड़ा हुआ है आदमी। हम चले जब खोजने, उसको गली-मैदान में ज़िन्दग़ी के खेत में, उजड़ा हुआ है आदमी। बिक रही है कौड़ियों में, देख लो इंसानियत, आदमी की पैठ में, बिगड़ा हुआ है आदमी। “रूप” तो है इक छलावा, रंग पर मत जाइए, नगमगी परिवेश में, पिछड़ा हुआ है आदमी। |
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बुधवार, 27 जून 2012
"जकड़ा हुआ है आदमी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आदमी की सही स्थिति का
जवाब देंहटाएंआकलन -
संयोजन
आभार-
सुन्दर रचना ||
बिक रही है कौड़ियों में, देख लो इंसानियत,
जवाब देंहटाएंआदमी की पैठ में, बिगड़ा हुआ है आदमी।
Lazabaab !
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंआदमी के गुणगान काफी अच्छे हैं।
जवाब देंहटाएंहम चले जब खोजने, उसको गली-मैदान में
जवाब देंहटाएंज़िन्दग़ी के खेत में, उजड़ा हुआ है आदमी।
बेहद सशक्त रचना।
फालतू की ऐँठ में, अकड़ा हुआ है आदमी।
जवाब देंहटाएंवानरों की कैद में, जकड़ा हुआ है आदमी।।
देश में अपने ही सबसे, बिछड़ा हुआ है आदमी
स्वान की भी शान है ,पिछड़ा हुआ है आदमी ....बढ़िया प्रस्तुति हमारे आपके समय का ज़िंदा दस्तावेज़ ....
बिक रही है कौड़ियों में, देख लो इंसानियत,
जवाब देंहटाएंआदमी की पैठ में, बिगड़ा हुआ है आदमी।
आदरणीय शास्त्री जी ..बहुत सुन्दर और सटीक ..अब जब यही हालात हैं कौड़ियों में इंसानियत बिकने लगी तो क्या कितनी उम्मीद रखी जाए लोभ भ्रष्टाचार बिना श्रम करोडपति अरबपति बनने की लालसा ने सब बंटाधार कर दिया है
भ्रमर ५
अपने से अन्जान है, पड़ा हुआ आदमी..
जवाब देंहटाएंउम्दा ...लेखनी
जवाब देंहटाएंआदमी की सही स्थिति का बढ़िया आकलन -
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति,,,सुंदर रचना,,,,,
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
हम चले जब खोजने, उसको गली-मैदान में
जवाब देंहटाएंज़िन्दग़ी के खेत में, उजड़ा हुआ है आदमी।
वाह ! आज के आदमी का सटीक चित्र .