कम्प्यूटर बन गई जिन्दगी, अन्तरजाल हुआ है तन। जालजगत के बिना कहीं भी, लगता नहीं हमारा मन।। जंगल लगता बहुत सुहाना, पर्वत लगते हैं अच्छे, सीधी-सादी बातें करते, बच्चे लगते हैं अच्छे, सुन्दर-सुन्दर सुमनों वाला, लगता प्यारा ये उपवन। जालजगत के बिना कहीं भी, लगता नहीं हमारा मन।। सुख की बातें-दुख की बातें, बेबाकी से देते हैं, भावनाओं के सम्प्रेषण से, अपना मन भर लेते हैं. आभासी दुनिया में मिलता, हमको सुख और चैन-अमन। जालजगत के बिना कहीं भी, लगता नहीं हमारा मन।। पंकहीन से कमल सुशोभित करते, बगिया और चमन। जालजगत के बिना कहीं भी, लगता नहीं हमारा मन।। उड़नतश्तरी दिख जाती है, ताऊ नजर नहीं आता, जालजगत के बिना कहीं भी, लगता नहीं हमारा मन।। |
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गुरुवार, 28 जून 2012
"अन्तरजाल हुआ है तन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह वाह शास्त्री जी आज तो सभी को समाहित कर लिया बहुत सुन्दर उपवन सजाया है सच आनन्द आ गया । ये सिर्फ़ आप ही कर सकते हैं।
जवाब देंहटाएं...बहुत सुन्दर काव्यमय भावोक्ति!
जवाब देंहटाएंबढ़िया है गुरु जी ।
जवाब देंहटाएंबधाई ।।
यहीं मिले हैं चाचा ताऊ, दीदी बुआ बेटियां गुरुवर ।
भाई बेटा मित्र भतीजा, व्यवसायी गुरुभाई टीचर ।।
एडवोकेट मीडिया पर्सन, नौकर मालिक बैंकिंग अफसर ।
पब्लीशर एजेंट सिनेमा, तरह तरह के कई करेक्टर ।।
हास्य
मिला शेर को सवा शेर फिर, एक बहेलिया कई कबूतर ।
बड़े बाप हैं यहाँ कई तो, मिला नहीं पर सच्चा पुत्तर ।।
बहुत खुबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंसच कहा है...बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत ही बढि़या ... भावमय करती पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंआभार
आपने सच कहा,,,,,
जवाब देंहटाएंजालजगत के बिना कहीं भी, लगता नहीं हमारा मन।।
भावमय,सुंदर रचना,,,,,
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
बहुत सुन्दर ,...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंnice...
जवाब देंहटाएंजाल-जगत का जाल है ऐसा, सब फंसने को सब तैयार
जवाब देंहटाएंकविता, ग़ज़ल कहानी कह लो, या बाँटों अपने विचार
काव्य सुधा की झील बना कर, कर देते हमें दंग
डाक्टर भी हैं, मास्टर भी हैं, रूपचन्द्र शास्त्री मयंक !
आपका आभार !
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टी की चर्चा शुक्रवारीय के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
जवाब देंहटाएं♥
आदरणीय शास्त्री जी
प्रणाम !
कमाल का गीत लिखा है…
कम्प्यूटर बन गई जिन्दगी, अन्तरजाल हुआ है तन।
जालजगत के बिना कहीं भी, लगता नहीं हमारा मन।।
आपकी लेखनी हमेशा कुछ नया करती ही रहती है …
हार्दिक शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बडा सुंदर गीत है , मन की भावनाओ को व्यक्त करता हुआ । आज के समय में यही हो रहा है
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत रचना..
जवाब देंहटाएंसुख की बातें-दुख की बातें, बेबाकी से देते हैं,
जवाब देंहटाएंभावनाओं के सम्प्रेषण से, अपना मन भर लेते हैं.
आभासी दुनिया में मिलता, हमको सुख और चैन-अमन।
जालजगत के बिना कहीं भी, लगता नहीं हमारा मन।।
सुख की बातें-दुख की बातें, बेबाकी से देते हैं,
भावनाओं के सम्प्रेषण से, अपना मन भर लेते हैं.
आभासी दुनिया में मिलता, हमको सुख और चैन-अमन।
जालजगत के बिना कहीं भी, लगता नहीं हमारा मन।।
सब कुछ मिलता जाल जगत में ,
पूरी हलुवा जाल जगत में ,
जितना डालो उतना मीठा, मिलता भैया ,
जाल जगत में .
बहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुति है शास्त्री जी की .
रचना बहुत अच्छी है।
जवाब देंहटाएंइस जाल में हम नहीं फंसे दिखे। :)
हम सबको आपस में जोड़ता जाल.... :)
जवाब देंहटाएंवाह कमाल की रचना है।
जवाब देंहटाएंवाह क्या कहने
जवाब देंहटाएंसुख की बातें-दुख की बातें, बेबाकी से देते हैं,
जवाब देंहटाएंभावनाओं के सम्प्रेषण से, अपना मन भर लेते हैं.
आभासी दुनिया में मिलता, हमको सुख और चैन-अमन।
जालजगत के बिना कहीं भी, लगता नहीं हमारा मन।।
वाह....वाह...!
सभी ब्लॉगर्स के मन की बात कह दिया आपने...सुंदर रचना !!
जवाब देंहटाएंडाक्टर साहब,
जवाब देंहटाएंअंतर्जाल के हर दीवाने की मन की बात को आपने क्या खूब अंदाज़ दिया है.....! वाह ...!!!
मनोज जी आप नहीं फंसे
जवाब देंहटाएंलेकिन उल्लू को फंसाया है
लगता है शास्त्री जी ने
आपके लिये आदमियों के साथ
निमंत्रण कहीं छपवाया है ।
आभारी हूँ उल्लू को साथ में रखने के लिये
नहीं तो मनहूसियत को कौन संभालने की हिम्मत करता है ।
आपकी सुन्दर प्रस्तुति से
जवाब देंहटाएंहम रह जाते हैं सदा ही दंग
रवि का लटका, अदा का झटका
जमा रहें हैं खूब ही रंग
जाल जगत में मिल जाता है
सबको मनचाहा सत्संग
खूबसूरत प्रस्तुति के लिए आभार,शास्त्री जी.