जीते जी मेरे घर वो ना दाखिल हुए।
मेरी मय्यत में ही वो तो शामिल हुए।।
बाट तकते रहे, ख्वाब बुनते रहे,
उनकी राहों से काँटे ही चुनते रहे,
जान बिस्मिल हुई, फूल कातिल हुए।
मेरी मय्यत में ही वो तो शामिल हुए।।
हम इधर से गये, वो उधर हो गये,
जिनके कारण जगे, वो मगर सो गये,
हमने उनको पुकारा, वो गाफिल हुए।
मेरी मय्यत में ही वो तो शामिल हुए।।
दिल धड़कता रहा, साँस चलती रही,
मन फड़कता रहा, आस पलती रही,
हम तो अव्वल रहे वो ही बातिल हुए।
मेरी मय्यत में ही वो तो शामिल हुए।।
अन्त में मिलने आये वो बा-कायदा,
अब तो आने से कोई नही फायदा,
वो तो बेदिल रहे, हम तो बा-दिल हुए।
मेरी मय्यत में ही वो तो शामिल हुए।।
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सोमवार, 8 जुलाई 2013
"जान बिस्मिल हुई, फूल कातिल हुए" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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क्या बात, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
वाह वाह...शानदार गजल.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अन्त में मिलने आये वो बा-कायदा,
जवाब देंहटाएंअब तो आने से कोई नही फायदा,
वो तो बेदिल रहे, हम तो बा-दिल हुए।
मेरी मय्यत में ही वो तो शामिल हुए।।
बहुत सुंदर,शास्त्री जी !
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ८ /७ /१ ३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत मर्मस्पर्शी लिखा है आदरणीय ,बधाई आपको
आपकी शायरी हमको अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंप्यार की भावना सच में सच्ची लगी
पल खुशी के हमें चंद हासिल हुए।
खूबसूरत ग़ज़ल.... शास्त्री सर!
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
वाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही सुंदर,
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारे ,
रिश्तों का खोखलापन
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_8.html
kya baat kahi hai....
जवाब देंहटाएंjaan bismil hui...wah wah....
क्या खूब है आदरणीय-
जवाब देंहटाएंआभार
बहुत खूब, खूबशूरत अहसाह ,बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंमुहब्बत और जुदाई में इन्तजार की कशिश लिये एक सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंवाह, गहरी बात..
जवाब देंहटाएंअन्त में मिलने आये वो बा-कायदा,
जवाब देंहटाएंअब तो आने से कोई नही फायदा,
वो तो बेदिल रहे, हम तो बा-दिल हुए।
मेरी मय्यत में ही वो तो शामिल हुए।।. बहुत खूब
बहुत सुदर गजल
जवाब देंहटाएं