मित्रों!
आज एक कव्वाली बन पड़ी है...!
नजरों से गिराने की ख़ातिर,
पलकों पे सजाये जाते
हैं।
मतलब के लिए सिंहासन पर, उल्लू भी बिठाये जाते
हैं।।
जनता ने चुना नहीं जिनको, वो चोर द्वार से आ
पहुँचे,
माटी के बुत हैं असरदार,
सरदार बनाये जाते हैं।
ढका हुआ भाषण से ही, ये लोकतन्त्र का चेहरा है
लोगों को सुनहरी-ख्वाब यहाँ, हर बार दिखाये
जाते हैं।
आगे से अरबी घोड़ी है, पीछे से लगती गैया है,
परदेशी दुधारू गैया के,
नखरे भी उठाये जाते
हैं।।
संकर नसलें-संकर फसलें, जब से आई हैं भारत में,
तब से जन-गण की आँखों में, आँसू ही पाये जाते
हैं।
मम्मी जी को तो अपना ही, दामाद बहुत ही भाता
है,
निर्धन बेटों की भूमि पर, वो महल बनाये जाते
हैं।
गांधी बाबा के खादर में, कब्जा है आज लुटेरों
का,
खद्दर की ओढ़ चदरिया को, धन-माल कमाये जाते
हैं।
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शुक्रवार, 19 जुलाई 2013
"नखरे भी उठाये जाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
नजरों से गिराने की ख़ातिर, पलकों पे सजाये जाते हैं।
जवाब देंहटाएंमतलब के लिए सिंहासन पर, उल्लू भी बिठाये जाते हैं।।
हा-हा.. बहुत ही समसामयिक गजल है सर जी !
अब उत्तर प्रदेश को ही देख लो , पुत्तर प्रदेश बनाकर रख दिया! पूरा खानदान ही समाजवाद के नाम पर सत्ता में है !
हटाएंढका हुआ भाषण से ही, ये लोकतन्त्र का चेहरा है
जवाब देंहटाएंलोगों को सुनहरी-ख्वाब यहाँ, हर बार दिखाये जाते हैं।
नजरों से गिराने की ख़ातिर, पलकों पे सजाये जाते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद कव्वाली पढने को मिली वो भी कटाक्षी खंजर भरी बहुत बहुत बधाई ,वाह वाह आदरणीय शास्त्री जी मैं तो गा कर भी देख रही हूँ खूब लय में आ रही है
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और सशक्त.
जवाब देंहटाएंरामराम.
गांधी बाबा के खादर में, कब्जा है आज लुटेरों का,
जवाब देंहटाएंखद्दर की ओढ़ चदरिया को, धन-माल कमाये जाते हैं।
...बहुत सटीक प्रस्तुति ..
सर ये भी अंदाज देख लिया आपका..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
मेरी कोशिश होती है कि टीवी की दुनिया की असल तस्वीर आपके सामने रहे। मेरे ब्लाग TV स्टेशन पर जरूर पढिए।
MEDIA : अब तो हद हो गई !
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/media.html#comment-form
वही हाल है -अँधे पीसें, कुत्ते खाय़ँ !
जवाब देंहटाएंवाह गुरु जी क्या निराला अंदाज प्रस्तुत किया है आपने
जवाब देंहटाएंगजब का कटाक्ष आपकी अपनी शैली में
साधुवाद
नजरों से गिराने की ख़ातिर, पलकों पे सजाये जाते हैं।
जवाब देंहटाएंमतलब के लिए सिंहासन पर, उल्लू भी बिठाये जाते हैं।।
संकर नसलें-संकर फसलें, जब से आई हैं भारत में,
तब से जन-गण की आँखों में, आँसू ही पाये जाते हैं।
मम्मी जी को तो अपना ही, दामाद बहुत ही भाता है,
निर्धन बेटों की भूमि पर, वो महल बनाये जाते हैं।
गांधी बाबा के खादर में, कब्जा है आज लुटेरों का,
खद्दर की ओढ़ चदरिया को, धन-माल कमाये जाते हैं।
हकीकत पर कटाक्ष करती हुई बहुत अच्छी कव्वाली...इसे सार्वजानिक मंच से सुनाया जाना चाहिए....