मित्रों!
कल से भगवान जगन्नाथ की
रथयात्रा प्रारम्भ हो रही है।
इस अवसर पर प्रस्तुत है,
मेरा यह गीत।
सारा जग गाता गुणगान।
जय-जय जगन्नाथ भगवान।।
जिस पथ से रथ निकलेगा,
धरती पावन हो जायेगी।
अवतारी प्रभु की नगरी,
भी मनभावन हो जायेगी।
रथ की महिमा बहुत महान।
जय-जय जगन्नाथ भगवान।।
इन्द्रद्युम्न जबसे कान्हा को,
अपनी नगरी में लाये।
तब से पुरी नगर में, खुशियों के
घन नभ पर हैं छाये।
ईश्वर देते हैं वरदान।
जय-जय जगन्नाथ भगवान।।
जगन्नाथ-बलभद्र-सुभद्रा,
की प्रतिमा मनभावन।
उनको इच्छित फल देतीं,
जिनका मन होता है पावन।
मन में करना इनका ध्यान।
जय-जय जगन्नाथ भगवान।।
|
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मंगलवार, 9 जुलाई 2013
"जय-जय जगन्नाथ भगवान" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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पंक्तियां रोचक लगी व सारगर्भित भी है
जवाब देंहटाएंपंक्तियां रोचक लगी व सारगर्भित भी है
जवाब देंहटाएंअभी पुरी की यात्रा कर के ही लौटे है और यकीन मानिए अगर आप वहां का हाल देख लें तो हालत- ए- मंदिर पर तत् क्षण कविता लिखने को बाध्य हो जाएंगे ...
जवाब देंहटाएंJai ho.
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंसादर नमन-
जवाब देंहटाएंजय जगन्नाथ-
जय जगन्नाथ भगवान.
जवाब देंहटाएंरामराम.
खूबशूरत अहसाह,बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंमन भक्तिमय हो गया - साधुवाद
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (10-07-2013) के .. !! निकलना होगा विजेता बनकर ......रिश्तो के मकडजाल से ....!१३०२ ,बुधवारीय चर्चा मंच अंक-१३०२ पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार
भावमय ..बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंजय हो
जवाब देंहटाएंभक्ति-भाव मन को पवित्र कर देता है.
जवाब देंहटाएंजगन्नाथ स्वामी, नयनपथगामी भवतु मे।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर महिमा प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंजय जगन्नाथ भगवान!
सुन्दर भाव ...
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |