चाँद और तारों की बातें,
मन के उद्गारों की बातें,
कितनी अच्छी लगती हैं!
उत्सव-त्यौहारों की बातें,
मोहक उपहारों की बातें,
कितनी अच्छी लगती हैं!
यौवन शृंगारों की बाते,
उन्नत बाज़ारों की बातें,
कितनी अच्छी लगती हैं!
अपने अधिकारों की बातें,
स्वप्निल संसारों की बातें,
कितनी अच्छी लगती हैं!
सुख के उजियारों की बातें,
भोले बंजारों की बातें,
कितनी अच्छी लगती हैं!
चहके परिवारों की बातें,
महके गलियारों की बातें,
कितनी अच्छी लगती हैं!
बढ़ते आधारों की बातें,
भरते भण्डारों की बातें,
कितनी अच्छी लगती हैं!
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सोमवार, 23 सितंबर 2013
"कितनी अच्छी लगती हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसच में कितनी अच्छी लगती हैं ये सारी बातें ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना आदरणीय शास्त्री जी ।
जितना अच्छा ये सब लगता है..
जवाब देंहटाएंउतनी ही अच्छी आपकी रचना भी लगती है...
:-)
वाकई ये सारी बातें सचमुच कितनी अच्छी लगती हैं ! मोहक रचना !
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना |
जवाब देंहटाएंक्या अच्छा लगता है या यूं कहें लग सकता है, का सुन्दर विश्लेषण |
आशा
सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंसच्ची बातें अच्छी लगतीं
जवाब देंहटाएं