खिल उठे फिर से वही सुन्दर सुमन।
छँट गये बादल
हुआ निर्मल गगन।।
उष्ण मौसम का
गिरा कुछ आज पारा,
हो गयी सामान्य
अब नदियों की धारा,
नीर से, आओ
करें हम आचमन।
रात लम्बी हो
गयी अब हो गये छोटे दिवस,
सूर्य की गर्मी
घटी, मिटने लगी तन की उमस,
सुख हमें बाँटती, मन्द-शीतल पवन।
अर्चना-पूजा की
चहके दीप लेकर थालियाँ,
धान के बिरुओं
ने पहनी हैं सुहानी बालियाँ,
अन्न की खुशबू
से, महका है चमन।
तितलियाँ उड़ने
लगीं बदले हुए परिवेश में,
भर गयीं फिर से
उमंगे आज अपने देश में,
शीत का होने
लगा अब आगमन।
|
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मंगलवार, 17 सितंबर 2013
"छँट गये बादल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत ही सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएं:-)
बहुत उत्तम रचना.
जवाब देंहटाएंअर्चना-पूजा की चहके दीप लेकर थालियाँ,
जवाब देंहटाएंधान के बिरुओं ने पहनी हैं सुहानी बालियाँ,
अन्न की खुशबू से, महका है चमन।
अन्न की खुश्बू। ..... बढ़िया प्रस्तुति
सुन्दर प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंdownloading sites के प्रीमियम अकाउंट के यूजर नाम और पासवर्ड
पूर्ण वर्षा, तृप्त धरती,
जवाब देंहटाएंशीत का अब आगमन हो।