गुम हो गया उजाला क्यों?
दर्पण काला-काला क्यों?
चन्दा गुम है, सूरज सोया
काट रहे, जो हमने बोया
सूखी मंजुल माला क्यों?
राज-पाट सिंहासन पाया
सुख भोगा-आनन्द मनाया
फिर करता घोटाला क्यों
जब खाली भण्डार पड़े हैं
बारिश में क्यों अन्न सड़े हैं
गोदामों में ताला क्यों
कहाँ गयीं सोने की लड़ियाँ
पूछ रही हैं भोली चिड़ियाँ
तेल कान में डाला क्यों?
जनता सारी बोल रही है
न्याय-व्यवस्था डोल रही है
दाग़दार मतवाला क्यों
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रविवार, 29 सितंबर 2013
"दर्पण काला-काला क्यों" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर गीत-
जवाब देंहटाएंगंभीर प्रश्न -
पर उत्तर कोई देना नहीं चाहता
आभार गुरुवर-
प्रश्नों के उत्तर सरल, पर रखते नहिं याद |
स्वार्थ-सिद्ध के मामले, भोगवाद उन्माद |
भोगवाद उन्माद , नशे से बहके बहके |
लेते रहते स्वाद, अनैतिक चीजें गहके |
नीति नियम आदर्श, हवा के ताजे झोंके |
रविकर आये होश, लिखे उत्तर प्रश्नों के ||
आज के राजनीतिक प्रबंध को आईना दिखाती व्यंग्य विडंबना को मुखरित करती बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंसटीक सुन्दर रचना .......
जवाब देंहटाएंAachhi post hamare blog par bhi aaye
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,सुंदर सृजन !!!
जवाब देंहटाएंRECENT POST : मर्ज जो अच्छा नहीं होता.
अच्छी व्यंगात्मक रचना गुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [30.09.2013]
चर्चामंच 1399 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
सुंदर रचना हमेशा की तरह !
जवाब देंहटाएंसन्नाट रचना
जवाब देंहटाएंवहह सुन्दर रचना वर्तमान परिवेश पर बढ़िया कटाक्ष..सदर नमन
जवाब देंहटाएं